Class 6 Science Chapter 8 Notes in Hindi Download | Education Flare
Class 6 Science Chapter 8 Notes. शरीर के विभिन्न भागों को उसी स्थान से मोड़ा व घुमाया जा सकता है जहां पर दो हिस्से एक दूसरे से जुड़े हो। इन स्थानों को
"Class 6 Science Chapter 8 Notes"
शरीर के विभिन्न भागों को उसी स्थान से मोड़ा व घुमाया जा सकता है जहां पर दो हिस्से एक दूसरे से जुड़े हो। इन स्थानों को संधि कहते हैं।
संधि शरीर के उस भाग को कहते हैं जहां पर दो हिस्से एक दूसरे से जुड़े होते हैं।
जो अस्थियां संधियों पर हील नहीं सकती, ऐसी संधियों को अचल संधि कहते हैं।
हमारे शरीर की सभी अस्थियां हमारे शरीर को सुंदर आकृति प्रदान करने के लिए एक ढांचे का निर्माण करती है इस ढांचे को कंकाल कहते हैं।
मानव कंकाल अनेक अस्थियों, संधियों एवं उपास्थियो से मिलकर बना होता है।
संकुचन की अवस्था में पेशी छोटी, कठोर एवं मोटी हो जाती है यह अस्थि को खींचती है।
मछली का सिर एवं पूछ उसके मध्य भाग की अपेक्षा पतला एवं नुकीला होता है शरीर की ऐसी आकृति धारा रेखीय कहलाती है।
'गेट ऑफ एनिमल्स' अरस्तु द्वारा पुस्तक लिखी गई है अरस्तु प्रसिद्ध ग्रीक दार्शनिक थे।
Book's Notes
अस्थियां एवम उपास्थियां मानव कंकाल बनाते हैं यह शरीर का पिंजर बनाता है और इसे एक आकृति भी देता है कंकाल चलने में सहायक है और आंतरिक अंगों की रक्षा करता है।
मानव कंकाल की खोपड़ी, मेरुदंड, पसलियां, वक्ष की अस्थि, कंधे एवं श्रोणि, मेखला तथा हाथ एवं पांव की अस्थियों से बनता है
पेशियों के जोड़े के एकांतर क्रम में सिकुड़ने एवं फैलने से अस्थियां गति करती है
अस्थियों की संधियां अनेक प्रकार की होती है यह उस संधि की प्रकृति एवं गति की दिशा पर निर्भर करता है।
पक्षियों की दृढ़ पेशियां तथा हल्की अस्थियां मिलकर उन्हें उड़ने में सहायता करती है यह पंखों को फड़फड़ा कर उड़ते हैं।
मछली शरीर के दोनों और एकांतर क्रम में वलय बनाकर जल में तैरती है।
सर्प अपने शरीर के दोनों और एकांतर कर्म में वलय बनाते हुए भूमि पर वलयाकार गति करता हुआ आगे कि ओर फिसलता हैं। बहुत सारी अस्थियां यवम उससे जुड़ी पेशियां शरीर को आगे की और धक्का देती हैं।
तिलचट्टे का शरीर एवं पैर कठोर आवरण से ढके होते हैं जो बाह्य कंकाल बनाता है वक्ष की पेशियां तीन जोड़ी पैरों एवं दो जोड़ी पंखों से जुड़ी होती है जो तिलचट्टे को चलने एवं उड़ने में सहायता करती हैं।
केंचुए में गति शरीर की पेशियों के बारी-बारी से विस्तरण एवं संकुचन से होती है। शरीर की अध: सतह पर शूक केंचुए को भूमि पर पकड़ बनाने में सहायक है।