"Class 12 Political Science 2nd Book Chapter 02 Notes"
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद औपनिवेशिक देशों में शासन व्यवस्था :-
- लोकतांत्रिक रास्ता :
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अधिकतर औपनिवेशिक देशों में लोकतंत्र का रास्ता चुना। यह रास्ता थोड़ा परेशानी से भरा जरूर था, परंतु जिन विदेशों में इस रास्ते को चुना वे सब आगे चलकर लोकतंत्र के इतिहास में एक सुनहरा युग साबित हुआ।
- एक नेता व पार्टी के हाथ में शासन व्यवस्था का होना (तानाशाही शासन व्यवस्था) :
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का दौड़ कई मायनों में महत्वपूर्ण था, एक तरफ दुनिया बड़ी तेजी से पूंजीवादी और समाजवादी गुट में शामिल हो रहा था तो दूसरी तरफ ब्रिटेन के चंगुल से आजाद देश अपना स्वतंत्र अस्तित्व तलाश रहे थे और इसी स्थिति का फायदा उठाते हुए कुछ दक्षिण एशियाई देशों में व कुछ यूरोप के देश की शासन व्यवस्था का पूर्ण प्रभावी नियंत्रण नेता व नेता के समूहों ने अपने हाथ में ले लिया। जैसे :- 'लीबिया में गद्दाफी' और 'उत्तरी कोरिया में किंग जॉन'।
- सैनिक शासन व्यवस्था का होना :
इस दौर की तीसरी सबसे बड़ी घटना सैनिक शासन व्यवस्था के रूप में देखने को मिला। अनेक देशों में सैनिक शासन व्यवस्था कायम हुई। लोगों के ना केवल मौलिक अधिकारों का हनन किया गया, बल्कि लोगों को मूलभूत अधिकारों से वंचित रखा गया। जैसे :- पाकिस्तान में 1947 के बाद लगातार सैनिक शासन देखने को मिला है। 'जनरल याहिया खान' और 'जनरल परवेज मुशर्रफ' के नेतृत्व में पाकिस्तान में सैनिक शासन स्थापित किया गया
अलोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के तीन प्रमुख तत्व :-
- लोकतंत्र
- तानाशाही शासन व्यवस्था
- सैनिक शासन राजस्थान
#हमारे नेता राजनीति को समस्या के रूप में नहीं बल्कि राजनीति को समस्या के समाधान का उपाय मानते हैं। क्यों...?
- क्योंकि हर समाज के लिए यह फैसला करना जरूरी होता है कि उसका शासन कैसे चलेगा और वह किन कायदो-कानूनों पर अमल करेगा अर्थात किसी भी समाज में कई समूह होते हैं।
- इनकी आकांक्षाए अक्सर अलग-अलग होती है तो ऐसे में हम विभिन्न समूह के हितों के आपसी टकराव से कैसे बच सकते हैं तो इस सवाल का जवाब है लोकतांत्रिक राजनीति के जरिए।
- राजनीति गतिविधि का उद्देश्य जनहित का फैसला करना और उस पर अमल करना होता है।
- क्योंकि समाज की हार प्रकार की समस्याओं का निवारण केवल लोकतांत्रिक राजनीति ही कर सकती है।
*चुनाव आयोग की स्थापना 1950 में हुई थी और चुनाव आयोग के प्रथम चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन थे।
भारत का संविधान :-
- अंगीकृत
26 नवंबर 1949
- हस्ताक्षर
24 जनवरी 1950
- लागू
26 जनवरी 1950
#चुनाव आयोग को ऐसा क्यों लगता था कि भारत के आकार देखते हुए एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना संभव नहीं है..?
- क्योंकि भारत आकार में किसी महादेश से कम नहीं हैं।
- चुनाव क्षेत्रों का सीमांकन करने और मतदाता सूची तैयार करने में अधिक समय लगना।
- मतदाताओं का साक्षर होना
- अधिकारियों और चुनाव कर्मियों का अप्रशिक्षित होना।
अलां की बेटी फलां की बीवी :- जब चुनाव आयोग ने मतदाता सूचियों का प्रथम प्रारूप प्रकाशित किया तो पता चला कि इसमें 40 लाख महिलाओं के नाम दर्ज होने से रह गए हैं तो इन महिलाओं को मतदाता सूची में 'अलां की बेटी फलां की बीवी' के नाम के रूप में दर्ज किया गया जो बाद में राजनीतिक जुमले के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
प्रथम आम चुनाव की स्थिति (1951-52) :-
- मतदाता
17 करोड़
- विधायक
3200
- ससद
489
- साक्षर
15%
Electronic Voting Machine (EVM) :-
- सन् 1990
चुनाव आयोग ने EVM का प्रथम इस्तेमाल केरल के विधानसभा चुनाव में सन 1990 में किया था।
- सन् 2004
और EVM का पूर्ण रूप से इस्तेमाल संपूर्ण देश में सन 2004 में हुआ था।
*पूरे विश्व में केवल 2 देशों में EVM का इस्तेमाल चुनाव के लिए किया जाता है। भारत और दक्षिण अफ्रीका में।
👉एक हिंदुस्तानी संपादक ने प्रथम आम चुनाव को इतिहास का सबसे बड़ा "जुआ" करार दिया। क्यों?
- क्योंकि देश के बड़े आकार भारी भरकम जनसंख्या के लिहाज से प्रथम आम चुनाव मतदाताओं के लिए अनूठा नहीं था बल्कि मतदाताओं की बड़ी संख्या गरीब और अनपढ़ लोगों की थी ऐसे माहौल में यह चुनाव लोकतंत्र के लिए परीक्षा की कठिन घड़ी थी।
- इसके अलावा इस वक्त ताकि लोकतंत्र केवल धनी देशों में ही कायम हुआ था। उस समय तक यूरोप के बहुत से देशों में महिलाओं को मताधिकार भी नहीं मिला था।
- ऐसे में हिंदुस्तान में "सार्वभौमिक मताधिकार" पर अमल हुआ और यह अपने आप में बड़ा जोखिम भरा प्रयोग था।
- आता इसलिए संपादक ने प्रथम आम चुनाव को इतिहास का सबसे बड़ा 'जुआ' करार दिया जो परिस्थितियों के अनुसार सही भी था।
भारत के प्रथम आम चुनाव पर विभिन्न राजनीतिक विद्वानों व संस्थाओं का विचार-
- हिंदुस्तानी संपादक
- ऑर्गेनाइजर पत्रिका
भारत में सार्वभौमिक मताधिकार का सफल होना
- अंग्रेजी अधिकारी
विश्व लाखों अनपढ़ लोगों के मतदान की बेहूदी नौटंकी देखेगा
1952 का आम चुनाव पूरी दुनिया में लोकतंत्र के इतिहास के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। कैसे?
- क्योंकि इस चुनाव में बड़ी संख्या निरक्षर लोगों की थी, केवल 15% लोग ही साक्षर थे।
- अधिकारियों का चुनाव कर्मियों की कमी के कारण चुनाव को दो बार स्थगित करना पड़ा।
1. अक्टूबर 1951 में
2. फरवरी 1952 में
- चुनाव अभियान, मतदान और गणना में कुल 6 महीने लगे।
- औसतन हर सीट के लिए 4 उम्मीदवार चुनाव के मैदान में थे अर्थात लोगों ने इस चुनाव में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।
- चुनाव के परिणाम घोषित हुए तो हारने वाले उम्मीदवारों ने भी इन परिणामों को निष्पक्ष बताया।
- सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के इस प्रयोग ने आलोचकों का मुंह बंद कर दिया। "टाइम्स ऑफ इंडिया" ने माना कि इन चुनावों के परिणामों ने उन सभी आलोचकों के संदेशों पर पानी फेर दिया है, जो "सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार" की इस शुरुआत को इस देश के लिए जोखिम का सौदा मान रहे थे। उस समय देश भी इस प्रयोग से हैरान थे तथा इसलिए 1952 का चुनाव पूरी दुनिया में लोकतंत्र के इतिहास के लिए "मील का पत्थर" साबित हुआ।
मौलाना अबुल कलाम :-
- इस्लाम के विद्वान थे
- स्वतंत्रता सेनानी और कांग्रेस के नेता थे
- भारत विभाजन के विरोध
- भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम थे।
राष्ट्रपति शासन
- प्रथम बार राष्ट्रपति शासन लागू
केरल (1959)
- सबसे ज्यादा बार राष्ट्रपति शासन लागू
1. 5 साल तक पंजाब में
2. मई 1987 से फरवरी 1992 तक
- अनुच्छेद 365 में वर्णन
- 2020
1. जम्मू एवं कश्मीर राज्य
2. राष्ट्रपति शासन के तहत 6 महीने के भीतर राज्य में चुनाव करवाना अनिवार्य होता है।
भारत के प्रमुख चुनाव आयुक्त
- प्रथम
सुकुमार सेन (1950)
- 21 वें
अचल कुमार ज्योति
- 22 वें
श्री ओम प्रकाश रावत
- 23 वें
सुनील अरोड़ा
- वर्तमान
सुनील चंद्रा (2021)
प्रथम तीन चुनावों में कांग्रेस के प्रभुत्व
प्रथम आम चुनाव दूसरा आम चुनाव तीसरा आम चुनाव
(1951-5) (1957) (1962)
Congress 364 371 सीटें 361 सीटें
सीटें
CPI 16 सीटें 27 सीटें 20 सीटें
- स्वतंत्रता संग्राम की विरासत हासिल होना
- कांग्रेस पार्टी में लोकप्रिय व करिश्माई नेताओं का होना
- चुनावी परिणाम के गणित में सबसे आगे
- राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर पर कांग्रेस पार्टी का शासन कायम होना
- प्रथम तीन चुनावों में कांग्रेस का प्रभाव होना
सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत :-
- हमारे देश के चुनाव प्रणाली में सर्वाधिक वोट पाने की जीत को अपनाया गया है।
- इस प्रणाली के तहत उस पार्टी को सरकार बनाने का न्यौता मिलता है जिस पार्टी को अन्य पार्टियों की तुलना में सबसे अधिक वोट मिला हो।
- ऐसी स्थिति को भारतीय राजनीति में सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत कहा जाता है।
राजकुमारी अमृत कौर :-
- अमृत कौर गांधीवादी और स्वतंत्र सेनानी थीं
- उन्हें विरासत में अपनी मां से "ईसाई धर्म" मिला था
- संविधान सभा के सदस्य थीं।
- भारत के प्रथम "स्वास्थ्य मंत्री" थी और इस पद पर वह 1957 तक रहीं।
सोशलिस्ट पार्टी
- स्थापना
सन 1934 में
- संस्थापक
आचार्य नरेंद्र देव
- उद्देश्य
समाजवादी कांग्रेस को ज्यादा से ज्यादा परिवर्तन कर्मी और समतावादी बनाना चाहते थे।
- सोशलिस्ट पार्टी की जड़े
2. राष्ट्रीय जनता दल (RJD)
3. जनता दल यूनाइटेड (JDU)
4. जनता दल सेक्यूलर
- सोशलिस्ट पार्टी के प्रकार
1. किसान मजदूर प्रजा पार्टी
2. प्रजा सोशलिस्ट पार्टी
3. संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी
- सोशलिस्ट पार्टी के प्रमुख नेता
1. आचार्य नरेंद्र देव
2. अशोक मेहता
3. जयप्रकाश नारायण
4. राम मनोहर लोहिया
5. एस. एस. जोशी
भारतीय राजनीति में कांग्रेस के प्रभुत्व की प्रकृति :-
- लोकतांत्रिक स्थितियों में कायम होना
- कांग्रेस को स्वतंत्रता संग्राम की विरासत हासिल होना
- इकलौते पार्टी होने का फायदा
- कांग्रेस का आजादी के आंदोलन का अगुआ होना
इंस्टीट्यूशनल रिवॉल्यूशनरी पार्टी (PRI)
- स्थापना
सन् 1929 में
- संस्थापक
प्लूटार्को इलिहास कैलस
- हार
2000 में यह पार्टी हार की शिकार हुई
PRI का स्वरूप :- मूल रूप से PRI में राजनेता और सैनिक नेता, मजदूर और किसान संगठन तथा अनेक राजनीतिक दलों समेत कई किस्म के हितों का संगठन था।
कांग्रेस के प्रभुत्व :-
- कांग्रेस देश की सबसे बड़ी पार्टी तथा सबसे पुरानी पार्टी
- यह सबसे मजबूत संगठन था।
- सबसे लोकप्रिय नेता इसमें शामिल थे जैसे- पंडित जवाहरलाल नेहरू
- कांग्रेस को आजादी की विरासत हासिल थी
- इस पार्टी को सभी वर्गों के लोगों का समर्थन था
- पंडित जवाहरलाल नेहरू जैसे करिश्माई नेता ने इसमें शामिल थे।
- कांग्रेस पार्टी की स्थापना सन 1885 में था।
नोट :-
- पहले आम चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी 16 सीट जीतकर दूसरे स्थान पर थी।
- 1957 के चुनाव में केरल राज्य में कम्युनिस्ट पार्टी ने गठबंधन सरकार बनाई थी।
- 1959 में केंद्र सरकार ने इस सरकार को अनुच्छेद 356 के तहत बर्खास्त कर दिया।
- केरल के मुख्यमंत्री "ई. एम. एस. नांबूरीपाद" ने इसका विरोध किया।
- अंतिम अंतरिम सरकार के दो विपक्षी नेताओं के नाम
1. Dr. बाबा साहब भीमराव राम जी अंबेडकर
2. श्यामा प्रसाद मुखर्जी
- जवाहरलाल नेहरू ने समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण को सरकार में शामिल होने का न्यौता दिया था।
- भारतीय जनसंघ ने एक देश, एक संस्कृति और एक विचार पर जोड़ दिया।
- हिंदू महासभा की स्थापना सन 1915 में मदन मोहन मालवीय ने की थी।
- भारत में पहली बार राष्ट्रीय शासन 1959 में केरल में लागू हुआ था।
केरल में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार :-
- 1957 में कांग्रेस केरल में हार गई।
- CPI को 126 में से 60 सीटें मिली
- 5 स्वतंत्र उम्मीदवारों का समर्थन मिला और "ई. एम. एस. नांबूरीपाद" केरल के मुख्यमंत्री बने।
- 1959 में केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग कर कम्युनिस्ट पार्टी सरकार को बर्खास्त कर दिया।
#कांग्रेस किन अर्थों में एक विचारधारात्मक गठबंधन थी? कांग्रेस में मौजूद विभिन्न विचारधारात्मक का उपस्थितियों का उल्लेख कीजिए।
- बीसवीं सदी में कांग्रेस द्वारा जन आंदोलन का स्वरूप हासिल करना।
- कांग्रेस का सामाजिक आधार बढ़ना।
- कांग्रेसका समाज के प्रत्येक वर्ग से जुड़ना
- स्थानीय स्तर से लोगों का कांग्रेस पार्टी में शामिल होना।
- कांग्रेस के अंदर विभिन्न सामाजिक समूह का होना। (DISCRIBE THIS ALL POINTS...☝️)
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (CPI)
- स्थापना
सन 1941 में
- संस्थापक
A.k. गोपालन
- उद्देश्य
देश की समस्या के समाधान के लिए साम्यवाद की राह अपनाना ही उचित होगा
- CPI के प्रमुख नेता
1. A.k. गोपालन
2. S. A. डांगे
3. E. M. S. नांबूरीपाद
4. P. S. जोशी
5. अजय घोष
सन् 1964 मे (चीन और सोवियत संघ के बीच
विचारधारात्मक अंतर के बाद)
विचारधारात्मक अंतर के बाद)
- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI)
- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी (CPIM)
A.k. गोपालन :-
- केरल के कम्युनिस्ट पार्टी के नेता के रूप में राजनीतिक जीवन का आरंभ।
- कांग्रेस के कार्यकर्ता के रूप में सन 1939 में कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल।
- सन 1952 में सांसद बने।
- सन 1964 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया में विभाजन के बाद कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) के मुख्य संस्थापक के रूप में फिर दोबारा राजनीतिक जीवन की शुरुआत की।
गठबंधन सरकार की मुख्य विशेषता :-सुलह समझौते के रास्ते पर चलना और समावेशी होना।
भारतीय जनसंघ (RSS-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) :-
- स्थापना
सन् 1951 में
- संस्थापक
श्यामा प्रसाद मुखर्जी, केशव राव बलिराम, डेडगेवार ने कि थी जो RSS के प्रत्यक्ष अध्यक्ष भी थे।
- उद्देश्य
RSS का मानना था कि भारत को एक देश, एक संस्कृति और एक राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ना चाहिए।
*भारतीय जनसंघ के पहले "अध्यक्ष मोहन" भागवत थे।
*भारतीय जन संघ का मुख्यालय नागपुर में है।
भारतीय जनसंघ की पृष्ठभूमि :-
- भारतीय जनसंघ का मानना था कि देश भारतीय संस्कृति और परंपरा के आधार पर आधुनिक प्रगतिशील और ताकतवर बन सकता है।
- जनसंघ ने भारत और पाकिस्तान को एक करके अखंड भारत बनाने की बात कही अंग्रेजी को हटाकर हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के आंदोलन में यह पार्टी सबसे आगे रही।
- इस पार्टी ने धार्मिक और सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों को रियासत देने की बात का विरोध किया।
- भारतीय जनसंघ को प्रथम चुनाव में कुल 3 सीटें और दूसरे आम चुनाव में कुल 4 सीटें मिली।
पहली गठबंधन सरकार (राष्ट्रीय मोर्चा)
जनता पार्टी वाम मोर्चा भाजपा (BJP)
दीनदयाल उपाध्याय :-
- दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 में उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के बग्लाचंद्रभार नामक गांव में हुआ था।
- इनकी मृत्यु 11 फरवरी 1968 को "उत्तर प्रदेश के मुगलसराय स्टेशन" पर आश्चर्यजनक स्थिति में है।
- सन 1942 से भारतीय जनसंख्या पूर्ण कालीन सदस्य थे।
- भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य थे और RSS के प्रथम महासचिव।
सी. राजगोपालाचारी :-
- कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और साहित्यकार तथा गांधी जी के करीबी थे।
- भारतीय संविधान सभा के सदस्य और स्वतंत्र भारत के "प्रथम गवर्नर जनरल" थे।
- भारत रत्न से सम्मानित पहले भारतीय तथा स्वतंत्र पार्टी के संस्थापक थे
स्वतंत्र पार्टी
- स्थापना
सन 1959 में
- संस्थापक
सी राजगोपालाचारी
- चिन्ह
चांद का सितारा
- स्वतंत्र पार्टी के मुख्य उद्देश्य
1. पार्टी का मानना था कि सरकार अर्थव्यवस्था में कम से कम हस्तक्षेप करें।
2. इसका मानना था कि समृद्धि समृद्धि सिर्फ व्यक्तिगत स्वतंत्रता के जरिए ही आ सकती है।
स्वतंत्र पार्टी की पृष्ठभूमि :-
- सरकार अर्थव्यवस्था में कम से कम हस्तक्षेप करें।
- समृद्धि सिर्फ व्यक्तिगत स्वतंत्रता के जरिए आ सकती है।
- यह पार्टी आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के हित को ध्यान में रखकर किए जा रहे हैं कराधान के नीति के खिलाफ थे इस पार्टी में निजी क्षेत्र को खुली छूट देने की तरफदारी की।
- स्वतंत्र पार्टी कृषि में जमीन की हदबंदी सरकारी खेती और खानदान के व्यापार पर सरकारी नियंत्रण के विरुद्ध थी।
- ने पार्टी गुटनिरपेक्षता की नीति और सोवियत संघ से दोस्ताना रिश्ते कायम रखने को भी गलत मानती थी।