"Class 12 Political Science 2nd Book Chapter 05 Notes"
"कांग्रेस प्रणाली : चुनौती और पुनर्स्थापना"
राजनीतिक उत्तराधिकार की चुनौती :-
- 1964 के मई में नेहरू जी की मृत्यु हो गई।
- उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी को लेकर बहस तेज हो गई।
- ऐसी आशंका होने लगी कि गैस टूट जाएगा और सैनिक शासन आ जाएगा।
1960 का दशक :-
- 1960 का दशक के बहुत खतरनाक था क्योंकि इस दशक में देश गरीबी, गैर-बेरोजगारी, संप्रदायिक एवं इसी दौरान दो युद्ध हुए।
- खाद संकट
- दो दिग्गज प्रधानमंत्रियों की मौत (जवाहरलाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री)
नेहरू के बाद लाल बहादुर शास्त्री :-
- नेहरू जी के उत्तराधिकारी बड़ी आसानी से चुन लिया गया।
- शास्त्री की नई प्रधानमंत्री बने।
- कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के कामराज मैं अपनी पार्टी के नेताओं और सांसदों से सलाह-मशवरा किया और शास्त्री जी के प्रधानमंत्री बना दिया गया।
- शास्त्री जी नेहरु के मंत्रिमंडल में मंत्री रह चुके थे।
- एक बार रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए रेल मंत्री पद से इस्तीफा दे चुके थे।
- शास्त्री जी के समय मुख्य चुनौतियां : 1. खाद संकट, 2. पाकिस्तान से युद्ध
- शास्त्री जी 1964 से 1966 तक देश के प्रधानमंत्री रहे।
- भारत चीन युद्ध के कारण पैदा हुए आर्थिक कठिनाइयों से उबरने की कोशिश कर रहा था साथी मानसून की असफलता देश में सूखे की स्थिति थी।
- लाल बहादुर शास्त्री जी "जय जवान जय किसान" का नारा दिये।
- 10 जनवरी 1966 को अचानक ताशकंद में उनका देहांत हो गया।
- 10 जनवरी 1966 पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब खान के साथ समझौता हुआ।
कार्यवाहक प्रधानमंत्री :-
- जब किसी प्रधानमंत्री की मृत्यु अचानक कार्यकाल के दौरान हो जाए और तत्काल में नए प्रधानमंत्री की नियुक्ति संबंध ना हो तो ऐसी स्थिति में जब तक नए प्रधानमंत्री नियुक्त नहीं किए जा सकते तब तक के लिए कार्यवाहक प्रधानमंत्री की नियुक्ति की जा सकती है।
- भारत में सबसे पहले कार्यवाहक प्रधानमंत्री गुलजारीलाल नंदा थे।
- नेहरू के बाद भी और शास्त्री के बाद भी भारत के कार्यवाहक प्रधानमंत्री गुलजारीलाल नंदा ही थे।
मोतीलाल नेहरू
जवाहरलाल नेहरू विजयलक्ष्मी कृष्णा हटी सिंह
- जन्म
14 नवंबर 1889 इलाहाबाद (UP)
- मृत्यु
27 मई 1964 नई दिल्ली
- पुरस्कार
भारत रत्न से सम्मानित
- पुत्री
इंदिरा गांधी
- पुस्तक
1. द डिस्कवरी ऑफ इंडिया (The Discovery of India)
2. एन ऑटोबायोग्राफी (An Autobiography in 1936)
लाल बहादुर शास्त्री
- जन्म
2 अक्टूबर 1904 मुगलसराय (UP)
- मृत्यु
10 जनवरी 1966 ताशकंद (उज्बेकिस्तान की राजधानी)
- पत्नी
ललिता शास्त्री
- पुत्र
1. अनिल शास्त्री
2. सुनील शास्त्री
- पुरस्कार
भारत रत्न से सम्मानित
शास्त्री जी के बाद इंदिरा गांधी :-
- शास्त्री जी की मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी जी को प्रधानमंत्री बना दिया गया, लेकिन यह इतनी आसानी से नहीं हुआ।
- इस बार मोरारजी देसाई और इंदिरा गांधी के बीच कड़ा मुकाबला था।
- मोराजी देसाई अनुभवी थे तथा मुंबई के मुख्यमंत्री रह चुके थे।
- पार्टी के नेताओं में इंदिरा जी को समर्थन देने का मन बना लिया था।
- इंदिरा गांधी ने मोरारजी देसाई को गुप्त दान में हरा दिया।
- पार्टी के बड़े नेताओं ने इंदिरा गांधी को यह सोच कर समर्थन किया कि इंदिरा गांधी जी के सलाह के अनुसार काम करेगी क्योंकि इंदिरा अनुभव नहीं था।
चौथे आम चुनाव तक देश में हुए बदलाव :-
- दो प्रधानमंत्री की मृत्यु हो गई और नए प्रधानमंत्री कम अनुभवी माना गया।
- इसी समय देश में गंभीर आर्थिक संकट, मानसून की असफलता, सूखा खेती की पैदावार में गिरावट, विदेशी मुद्रा की कमी और सैन्य खर्चों में बढ़ोतरी झेलनी पड़ी।
- इंदिरा गांधी कि सरकार के शुरुआती फैसलों में रुपये का अवमूल्यन करना माना गया कि रुपये का अवमूल्यन अमेरिका के दबाव में किया गया पहले के वक्त में एक अमेरिकी डॉलर की कीमत ₹5 थी जो अब बढ़कर ₹7 हो गई।
- महंगाई बढ़ी, खदान में कमी आई, बेरोजगारी बढ़ी, देश में बंद और हड़ताले हुई।
- साम्यवादी और समाजवादी पार्टी ने समानता के लिए संघर्ष छेड़ा।
- कम्युनिस्ट पार्टी (M) सशस्त्र कृषक विद्रोह छेड़ दिया किसानों को संगठित किया गया हिंदू मुस्लिम दंगे हुए।
गैर-कांग्रेस वाद :-
- देश में बिगड़ते माहौल को देखकर विपक्षी सक्रिय हो गए।
- इन दलों को लगा कि इंदिरा गांधी की अनुभव हीनता और कांग्रेस की अंदरूनी उठापटक से उन्हें कांग्रेस को सत्ता से हटाने का एक अवसर हाथ लग गया।
- राम मनोहर लोहिया ने इसे गैर-कांग्रेस वाद का नाम दिया।
- उन्होंने कहा कि कांग्रेस का शासन अलोकतांत्रिक और गरीबों के खिलाफ हैं इसीलिए गैर कांग्रेसी दलों को एक साथ आ जाना चाहिए ताकि लोकतंत्र को वापस लाया जा सके।
चौथा आम चुनाव-1967 :-
- फरवरी 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हुए इस चुनाव में कांग्रेस को राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर पर गहरा धक्का लगा।
- इसी चुनाव को कई राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने इसे राजनीतिक भूकंप की संज्ञा दी।
- जैसे तैसे लोकसभा में बहुमत मिला लेकिन सीटें तथा मत कम मिले इतने कम वोट कांग्रेस को कभी नहीं मिले थे।
कांग्रेस के दिग्गज नेता हारे :-
- तमिलनाडु से के कामराज
- महाराष्ट्र से एस.के. पाटिल
- बंगाल से अतुल्य घोष
- बिहार से के.बी. सहाय
*कांग्रेस विधानसभा चुनाव में 7+2 राज्यों से हार गई
- 7 राज्यों में बहुमत नहीं मिला
- 2 राज्यों में दलबदल के कारण
नोट :-
- चौथे आम चुनाव में कांग्रेस को पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मद्रास (तमिलनाडु), उड़ीसा और केरल में बहुमत नहीं मिला।
- मद्रास (वर्तमान तमिलनाडु) में क्षेत्रीय पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कषगम (DMK) की जीत हुई
- DMK - हिंदी विरोधी आंदोलन
- भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी
- भारत के पहले कार्यवाहक प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा
- हरियाणा के एक विधायक गया लाल 1967 के चुनाव में एक पखवाड़े में तीन पार्टी (कांग्रेस - यूनाइटेड फ्रंट - कांग्रेस) बदली जिसे "आया राम गया राम" कहा गया।
- 1960 के दशक में इंदिरा गांधी न दो चुनौतियों का सामना किया।
2. 1967 के चुनाव में हार सीटें के
- इंदिरा गांधी ने सरकार की नीति को वामपंथी रूप देने की कोशिश की।
- वामपंथी : गरीब, पिछड़े लोगों की नीतियां बनाना।
- प्रिवी पर्स : प्रिवी पर्स भूतपूर्व राजाओं, महाराजाओं को मिलने वाले विशेष अधिकार थे जिसमें निजी संपदा, विशेष भत्ते आदि दिए जाते थे।
- PUF - popular United front
- SVD - संयुक्त विधायक दल
- CWC - कांग्रेस वर्किंग कमेटी
- DMK - द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम
गठबंधन :-
- 1967 के विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला इसके कारण गठबंधन की परिघटना सामने आई।
- अनेक पार्टियों ने मिलकर संयुक्त विधायक दल बनाया और गैर कांग्रेसी सरकारों को समर्थन दिया।
वामपंथी, दक्षिणपंथी, जनसंघ
पंजाब - PUF + अकाली दल और मास्टर ग्रुप
CPI, CPI(M), SSP, रिपब्लिकन पार्टी, जनसंघ
दलबदल :-
- 1967 के चुनाव में दलबदल की घटना सामने आई।
- जब कोई नेता किसी खास दल के चुनाव चिन्ह को लेकर चुनाव लड़े और जीत जाए, चुनाव जीतने के बाद इस दल को छोड़कर किसी दूसरे दल में शामिल हो जाए तो इसे दलबदल कहते है।
कांग्रेस में विभाजन :-
- 1967 के आम चुनाव में कांग्रेस केंद्र में तो सरकार बनाने में कामयाब हो गई लेकिन राज्यों से सत्ता खो बैठे।
इंदिरा बनाम सिंडिकेट :-
- इंदिरा गांधी को असली चुनौती हकीकत से नहीं बल्कि खुद अपनी पार्टी के भीतर से मिली उन्हें सिंडिकेट से निपटना था।
- सिंडिकेट - कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह था जिसे सिंडिकेट कहते थे।
- सिंडिकेट ने इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- सिंडिकेट को उम्मीद थी कि इंदिरा गांधी उनकी सलाह पर अमल करेंगे।
- इंदिरा गांधी को सरकार और पार्टी के अंदर अपना खुद का मुकाम बनाना था।
- अपने सलाहकारों और विश्वस्त की समूह में पार्टी से बाहर के लोगों को रखा।
10 सूत्री कार्यक्रम :-
- बैंको पर सामाजिक नियंत्रण
- बीमा का राष्ट्रीयकरण
- शहरी संपदा
- आय के परिसिमन
- खाद्यान्न का सरकारी वितरण
- भूमि सुधार
- गरीबों को भूखंड देना
राष्ट्रपति पद का चुनाव :-
- 1969 में राष्ट्रपति चुनाव के समय इंदिरा गांधी और सिंडिकेट के बीच गुटबाजी खुलकर सामने आ गई।
- तत्कालीन राष्ट्रपति "डॉ जाकिर हुसैन" की मृत्यु हो गई थी।
- सिंडिकेट ने लोकसभा के अध्यक्ष "संजीव रेड्डी" को राष्ट्रपति के उम्मीदवार के रूप में खड़ा करने में सफलता पाई।
- इंदिरा गांधी और एन संजीव रेड्डी की पहले से अनबन थी।
- इंदिरा गांधी ने अपनी 'वी.वी. गिरी' को बढ़ावा दिया।
- दोनों गुट राष्ट्रपति पद के चुनाव से अपनी ताकत अजमना चाहते थे।
- एस. निजलिंगप्पा कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा पार्टी उम्मीदवार रेडी को वोट दें इंदिरा गांधी ने कहा अपनी अंतरात्मा की आवाज पर वोट डालें।
- अंत में वी.वी. गिरी विजयी हुए, यह स्वतंत्र उम्मीदवार थे संजीव रेड्डी की हार से पार्टी का टूटना तय था।
- कांग्रेस अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अपनी पार्टी से निष्कासित कर दिया।
कांग्रेस पार्टी में विभाजन
कांग्रेस O कांग्रेस R
पुरानी कांग्रेस नई कांग्रेस
सिंडिकेट इंदिरा गांधी
- इंदिरा गांधी ने कहा उनकी कांग्रेसी ही असली कांग्रेसी है और इस टूट को विचारधाराओं की लड़ाई कहा।
- इंदिरा गांधी ने अपनी पार्टी को गरीब लोगों की हिमायती बताया।
- इंदिरा गांधी ने 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया प्रिवी पर्स की समाप्ति की।
- मोरारजी देसाई ने इसका विरोध किया और सरकार से किनारा कर लिया।
- मोरारजी देसाई नहीं चाहते थे कि प्रिवी पर्स की समाप्ति हो उन्होंने कहा प्रिवी पर्स की समाप्ति राजा और रियासतों के साथ विश्वासघात है।
1971 के चुनाव में कांग्रेस की वापसी :-
- कांग्रेस में टूट से इंदिरा गांधी की सरकार अल्पमत में आ गई।
- DMK और CPI ने अपना समर्थन जारी रखा इसी दौरान सरकार ने समाजवादी रंग में देखने का प्रयास किया।
- इंदिरा गांधी ने भूमि सुधार के कानूनों के क्रियान्वयन के लिए जबरदस्त अभियान चलाया।
- दो परिसीमन के कानून बनाएं।
- इंदिरा गांधी ने 1970 के दिसंबर में लोकसभा भंग करने की सिफारिश की यह एक साहसिक कदम था।
- लोकसभा के लिए पांचवें आम चुनाव फरवरी 1971 में हुए।
चुनावी मुकाबला :-
- चुनावी मुकाबला कांग्रेस (R) के विपरित जान पड़ी रहा था क्योंकि कांग्रेस जर्जर हो रही थी।
- सबको विश्वास था कि कांग्रेस पार्टी की असली ताकत कांग्रेस (O) के नियंत्रण में है।
- ग्रैंड-अलाइंस : सभी बड़ी गैर साम्यवादी और गैर कांग्रेसी विपक्षी पार्टियों ने एक चुनावी गठबंधन बना लिया था जिसे ग्रैंड-अलायंस कहां गया।
- इससे इंदिरा गांधी के लिए स्थिति और कठिन हो गई।
- SSP, PSP, जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी, भारतीय क्रांति दल सब एक छतरी के नीचे आ गए।
*पांचवे आम चुनाव में ग्रैंड लाइंस के हारने के मुख्य कारण क्या थे?
- नई कांग्रेस के पास एक मुद्दा था जो कांग्रेस (O) के पास नहीं था।
- इंदिरा जहां भी देशभर में जाति हमेशा यही कहती थी कि विपक्षी गठबंधन के पास बस एक ही मुद्दा है "इंदिरा हटाओ।"
- लेकिन इंदिरा ने हमेशा यही कहा "गरीबी हटाओ" इसके अलावा इंदिरा ने सार्वजनिक क्षेत्र की समृद्धि, भू स्वामित्व तथा शहरी संपदा का परिसीमन, आय तथा रोजगार के अवसर प्रिवी पर्स की समाप्ति।
- इंदिरा ने वंचित तबकों खासकर भूमिहीन किसान, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, महिला और बेरोजगार नौजवान के बीच अपने समर्थन का आधार तैयार करने का प्रयास किया।
1971 के नोट के चुनाव परिणाम :-
- कांग्रेस (R) और CPI गठबंधन को कितनी सीटें मिली जितने कि पिछले चार आम चुनाव में नहीं मिले थे। कांग्रेस (R) 352 + 23 (CPI) = 375 (गठबंधन)
- कांग्रेस (O) को मात्र 16 सीटें मिली और महाजोट को 40 सीटें।
- 1971 लोकसभा चुनाव के बाद बांग्लादेश संकट हो गया और भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया।
- भारत जीता और बांग्लादेश नामक स्वतंत्र देश पूर्वी पाकिस्तान बना।
- इसके बाद इंदिरा की लोकप्रियता को चार चांद लग गए और इसकी प्रशंसा विपक्षी नेताओं ने भी किया।
- 1972 में विधानसभा चुनाव हुए और कांग्रेस (R) चुनाव में जीती।
- इंदिरा को गरीबों और वंचितों के रक्षकों के रूप में देखा गया।
- कांग्रेस (R) ने अपना दबदबा बना लिया।
कांग्रेस प्रणाली की पुनर्स्थापना :-
- जिस प्रकार कांग्रेस 1967 के चुनाव के समय बुरे दौर से गुजरी उसके बाद कांग्रेस टूटी और 1971 में इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को दोबारा उसी स्थान पर ला दिया जहां कांग्रेस पहले थी।
- अब कांग्रेस के व्यक्ति की लोकप्रियता पर निर्भर थी इस पार्टी में कोई अलग-अलग गुट नहीं था।
- पार्टी अब गरीबों अल्पसंख्यकों महिलाओं दलित आदिवासियों पर ज्यादा निर्भर थी।
- इंदिरा ने कांग्रेस प्रणाली को पुनर्स्थापित किया लेकिन इसकी प्रकृति बदल कर।
- पहले कांग्रेस प्रणाली के भीतर हर तनाव और संघर्ष को बचा लेने की क्षमता थी लेकिन कांग्रेस में यह क्षमता नहीं थी।
- कांग्रेस में इंदिरा की पकड़ बढ़ी।
- अब कांग्रेस की प्रकृति बदल चुकी थी।