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Class 6 (S.S.T) History Chapter 05 Notes in Hindi

Class 6 (S.S.T) History Chapter 05 Notes in Hindi. वर्ण व्यवस्था: पुरोहितों ने लोगों को 4 वर्गों में विभाजित किया जिन्हें वर्ण कहते हैं।

Class 6 History Chapter 05 Notes in Hindi

Class 6 (S.S.T) History Chapter 05 Notes in Hindi

"राज्य, राजा और एक प्राचीन गणराज्य"

अश्वमेध यज्ञ द्वारा राजा बनने की प्रक्रिया :- अश्वमेघ यज्ञ में एक घोड़े को राजा के लोगों की देखरेख में स्वतंत्र रूप से घूमने के लिए छोड़ दिया जाता था। इस घोड़े को किसी दूसरे राजा ने रोका तो उसे वहां अश्वमेध यज्ञ करने वाले राजा से लड़ाई करनी पड़ती थी। अगर उन्होंने घोड़े को जाने दिया तो इसका मतलब यह होता था कि आश्रम में यज्ञ करने वाला राजा उनसे ज्यादा शक्तिशाली था। यह यज्ञ विशिष्ट पुरोहितों द्वारा संपन्न किया जाता था।

'वर्ण व्यवस्था'

वर्ण व्यवस्था: पुरोहितों ने लोगों को 4 वर्गों में विभाजित किया जिन्हें वर्ण कहते हैं।

1). ब्राह्मण: पहला वर्ण ब्राह्मणों का था। उनका काम वेदों का अध्ययन अध्यापन और यह करना था जिनके लिए उन्हें उपहार मिलता था।
2). क्षत्रिय: दूसरा स्थान शासकों का था जिन्हें क्षत्रिय कहा जाता था। उनका काम युद्ध करना और लोगों की रक्षा करना था।
3). वैश्य: तीसरे स्थान पर विश या वैश्य थे। इनमें कृषक पशुपालक और व्यापारी आते थे। क्षत्रिय और वैश्य दोनों को ही यज्ञ करने का अधिकार प्राप्त था।
4). शूद्र: वर्णों में अंतिम स्थान शूद्रों का था। इनका काम अन्य तीनों वर्णों की सेवा करना था। इन्हें कोई अनुष्ठान करने का अधिकार नहीं था। प्राय: औरतों को भी शूद्रों के समान माना गया। महिला तथा शूद्र को वेदों के अध्ययन का अधिकार नहीं था।

लोगों ने वर्ण व्यवस्था का विरोध क्यों किया?
:-कई लोगों ने ब्राह्मणों द्वारा बनाई गई वर्ण व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया।
1). वर्ण का निर्धारण जन्म के आधार पर होता था। अगर कोई ब्राह्मण है तो उसका पुत्र भी ब्राह्मण होगा अगर कोई शूद्र है तो उसका पुत्र भी शूद्र ही होगा। लोग वर्ण निर्धारण की इस प्रक्रिया को सही नहीं मानते थे।

2). व्यवसाय (काम काज) को लेकर लोगों में भेदभाव देखने को मिलता था। कुछ लोग इस भेदभाव को उचित नहीं समझते थे।

3). अनुष्ठानों को संपन्न करने का अधिकार सभी को नहीं था लोग चाहते थे अनुष्ठानों को संपन्न करने का अधिकार सबका हो।

4). शूद्र को लेकर समाज में छुआछूत की भावना थी इसलिए कई लोगों ने छुआछूत की आलोचना की।

5). राजा केवल ब्राह्मण और क्षत्रिय ही बन सकते थे इसलिए लोगों ने राजा बनने की इस प्रक्रिया का विरोध किया।


'महाजनपद'

जनपद:- 1). महायज्ञ को करने वाले राजा अब लोगों के राजा ना होकर जनपदों के राजा माने जाने लगे। जनपद का शाब्दिक अर्थ: लोगों के बसने की जगह होता है।

2). पुरातत्वविदो ने इन जनपदों की कई बस्तियों की खुदाई की है। दिल्ली में पुराना किला, उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हस्तिनापुर और एटा के पास अंतरजीखेड़ा इनमें प्रमुख हैं।

3). खुदाई से पता चला है कि लोग झोपड़ियों में रहते थे और मवेशी तथा अन्य जानवरों को पालते थे। वह चावल, गेहूं, धान, जौ, दालें, गन्ना, तिल तथा सरसों जैसी फसलें उगाते थे।

4). लोग मिट्टी के बर्तन भी बनाते थे इनमें कुछ धूसर और कुछ लाल रंग के होते थे। इन पुरास्थलों में कुछ विशेष प्रकार के बर्तन मिले हैं जिन्हें 'चित्रित धूसर पात्र' के रूप में जाना जाता है।

महाजनपद: करीब 2500 साल पहले कुछ जनपद अधिक महत्वपूर्ण हो गए इन्हें महाजनपद कहा जाने लगा। अधिकतर महाजनपदों की एक राजधानी होती थी। कई राजधानियों में किलेबंदी की गई थी। अर्थात इनके चारों और लकड़ी, ईट तथा पत्थर की ऊंची दीवारें बनाई गई थी। राजा इन महाजनपदों को नियंत्रित करने के लिए अब सेना रखने लगे थे। सिपाहियों को नियमित वेतन देकर पूरे साल रखा जाता था।

महाजनपद में कर :- महाजनपदों के राजा विशाल किले बनवाते थे और बड़ी सेना रखते थे इसलिए उन्हें प्रचुर संसाधनों की आवश्यकता होती थी। इसके लिए उन्हें कर्मचारियों की भी आवश्यकता होती थी। अतः महाजनपदों के राजा, लोगों द्वारा समय-समय पर लाए गए उपहार पर निर्भर न रहकर अब नियमित रूप से कर वसूलने लगे।

महाजनपद के राजा द्वारा किन-किन चीजों पर कर लगाया गया था?
महाजनपद के राजा द्वारा चीजों पर लगाया गया कर :-

1). फसल: फसलों पर लगाए गए कर सबसे महत्वपूर्ण थे क्योंकि अधिकांश लोग कृषक ही थे। प्रायः उपज का 1/6 हिस्सा कर के रूप में निर्धारित किया जाता था। जिसे भाग कहा जाता था।
2). कारीगरों पर: कारीगरों के ऊपर भी कर लगाए गए जो प्रायः श्रम के रूप में चुकाए जाते थे। जैसे कि एक बुनकर, लोहार या सुनार को राजा के लिए महीने में एक दिन का काम करना पड़ता था।
3). पशुपालकों पर: पशुपालकों को जानवरों या उनके उत्पाद के रूप में कर देना पड़ता था।
4). व्यापारियों पर: व्यापारियों को सामान खरीदने बेचने पर भी कर देना पड़ता था।
5) आखेटक तथा संग्राहकों पर: आखेटक तथा संग्राहकों को जंगल से प्राप्त वस्तुएं देनी पड़ती थी।

महाजनपद के समय कृषि में परिवर्तन:
1). इस युग में कृषि के क्षेत्र में दो बड़े परिवर्तन आए हल के फाल अब लोहे के बनने लगे अब कठोर जमीन को लकड़ी के फॉल की तुलना में लोहे के फॉल से आसानी से जोड़ा जा सकता था इससे फसलों की उपज बढ़ गई।

2). दूसरे लोगों ने धान के पौधों का रोपण शुरू किया। अर्थात खेतों में बीज छिड़ककर धान उपजाने के बजाय धान के पौध तैयार कर उनका रोपण शुरू किया गया।

3). अब पहले की तुलना में बहुत ज्यादा पौधे जीवित रह जाते थे। इसलिए पैदावार भी ज्यादा होने लगी। इसमें कमरतोड़ परिश्रम लगता था यह काम ज्यादातर दास - दासी तथा भूमिहीन खेतिहर मजदूर करते थे।

'महाजनपद मगध'

1). यातायात और खेती: लगभग 200 सालों के भीतर मगध सबसे महत्वपूर्ण जनपद बन गया। गंगा और सोन जैसी नदियां मगध से होकर बहती थी यह नदियां यातायात और जल वितरण और जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण थी।
2). मगध में लोहा तथा हाथी: मगध का एक हिस्सा जंगलों से भरा था इन जंगलों में रहने वाले हाथियों को पकड़कर और उन्हें प्रशिक्षित कर सेना के काम में लगाया जाता था। जंगलों से घर, गाड़ियां तथा रथ बनाने के लिए लकड़ी मिलती थी। इसके अलावा इस क्षेत्र में लोहा अयस्क की खदानें हैं जो मजबूत औजार और हथियार बनाने के लिए बहुत उपयोगी थे।
3). मगध के महत्वपूर्ण शासक: मगध में दो बहुत ही शक्तिशाली शासक बिंबिसार तथा अजातशत्रु हुए। अन्य जनपदों को जीतने के लिए यह हर संभव साधन अपनाते थे। महापद्मनंद एक और महत्वपूर्ण शासक थे। बिहार में राजगृह (राजगीर) कई सालों तक मगध की राजधानी बनी रही। बाद में पाटलिपुत्र (पटना) को राजधानी बनाया गया।
4). मगध का सिकंदर युद्ध में विजय: 2300 साल से भी पहले की बात है, मेसिडोनिया का राजा सिकंदर विश्व विजय करना चाहता था। पूरी तरह सफल ना होने पर भी वह मिस्र और पश्चिमी एशिया के कुछ राज्यों को जीता हुआ भारतीय उपमहाद्वीप में व्यास नदी के किनारे तक पहुंच गया जब उसने मगध की और कूच करना चाहत तो उसके सिपाही ने इंकार कर दिया। वे इस बात से डरते थे कि भारत के शासकों के पास पैदल, रथ और हाथियों की बहुत बड़ी सेना थी।


महाजनपद वज्जि: 1). वज्जि राज्य मगध के ही नजदीक था इसकी राजधानी वैशाली (बिहार) थी। यहां एक अलग किस्म की शासन व्यवस्था थी जिसे गण या संघ कहते थे।

2). गण या संग में कई शासक होते थे। कभी-कभी लोग एक साथ शासन करते थे जिसमें से प्रत्येक व्यक्ति राजा कहलाता था।

3). बुद्ध तथा महावीर दोनों ही गण या संघ से संबंधित थे। बौद्ध साहित्य में संघ के जीवन का बहुत ही सजीव वर्णन मिलता है।

4). कई शक्तिशाली राजा इन संघों को जीत जीतना चाहते थे। इसके बावजूद उनका राज्य अब से लगभग 1500 साल पहले तक चलता रहा। उसके बाद गुप्त शासकों ने गण और संघ पर विजय प्राप्त कर उन्हें अपने राज्य में शामिल कर लिया।

गण: गण शब्द का प्रयोग कई सदस्यों वाले समूह के लिए किया जाता है।

संघ: संघ अर्थात संगठन या सभा।

नोट: लगभग 2500 साल पहले एथेंस के लोगों ने एक शासन व्यवस्था की स्थापना की जिसे प्रजातंत्र या गणतंत्र कहते हैं।



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