"Class 6 History Chapter 06 Notes"
"नए प्रश्न नए विचार"
'बुद्ध की कहानी'
बुद्ध का परिचय: बुध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था बाद में इनका नाम गौतम पड़ा। यह बौद्ध धर्म के संस्थापक थे। इनका जन्म लगभग 2500 वर्ष पूर्व हुआ था। बुद्ध क्षत्रिय थे तथा 'शाक्य' नामक एक छोटे से गण से संबंधित थे।
बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति: गौतम बुध युवावस्था में ही ज्ञान की खोज में उन्होंने घर के सुखों को छोड़ दिया। उन्होंने वर्षों तक ज्ञान की प्राप्ति के लिए भ्रमण किया अंत में वे स्वयं ही रास्ता ढूंढने का निश्चय किया। इसके लिए उन्होंने बोध गया (बिहार) में एक पीपल के नीचे कई दिनों तक तपस्या किया तथा उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद से यह बुध के रूप में जाने गए।
बुद्ध द्वारा दी गई शिक्षा:
1). बुद्ध ने शिक्षा दी कि यह जीवन कष्टों और दुखों से भरा हुआ है और ऐसा हमारी इच्छा और लालसाओं के कारण होता है। बुद्ध ने इसे लिप्सा को तञ्हा (तृष्णा) कहा हैं। बुद्ध ने शिक्षा दी कि आत्मसंयम पाकर हम ऐसी लालसाओं से मुक्ति पा सकते हैं।
2). उन्होंने लोगों को दयालु होने तथा मनुष्य के साथ-साथ जानवरों के जीवन का भी आदर करने की शिक्षा दी। वे मानते थे कि हमारे कर्मों के परिणाम चाहे वो अच्छे हो या बुरे हमारे वर्तमान जीवन के साथ साथ बाद के जीवन को भी प्रभावित करते हैं।
3). बुद्ध ने कहा कि लोग किसी शिक्षा को केवल इसलिए नहीं स्वीकार करें कि यह उनका उद्देश्य बल्कि वे इसे अपने विवेक से मांपे।
उपनिषद: उपनिषद उत्तर वैदिक ग्रंथों का हिस्सा थे। उपनिषद का शाब्दिक अर्थ है 'गुरु के समीप बैठना'। इन ग्रंथों में अध्यापकों और विद्यार्थियों के बीच बातचीत का संकलन किया गया है ये विचार सामान्य वार्तालाप के रूप में प्रस्तुत किए गए हैं।
व्याकरणविद पाठिनि: 2500 साल पहले महाजनपदों और बुध के बीच में कुछ अन्य विद्वान भी खोज कर रहे थे। उन्हीं प्रसिद्ध विद्वानों में एक पाणिनि ने संस्कृत भाषा के व्याकरण की रचना की उन्होंने स्वरों तथा व्यंजनों को एक विशेष क्रम में रखकर उनके आधार पर सोत्रो की रचना की। ये सूत्र बीजगणित के सूत्रों से काफी मिलते-जुलते हैं। इसका प्रयोग कर उन्होंने संस्कृत भाषा के प्रयोग के नियम लघु सूत्रों (लगभग 3000) के रूप में लिखें।
भारतीय दर्शन की 6 पद्धति (षड्दर्शन):
सदियों से भारत द्वारा सत्य की बौद्धिक खोज का प्रतिनिधित्व दर्शन की 6 शाखाओं ने किया। ये वेशेषिक, न्याय, सांख्य, योग्य, पूर्व मीमांसा और वेदांत या उत्तर मीमांसा के नाम से जाने जाते हैं। दर्शन कि इन 6 पद्धतियों की स्थापना क्रमशः ऋषि कमल, गौतम, कपिल, पतंजलि जैमिनी और व्यास द्वारा की गई मानी जाती है। जो आज भी देश में बौद्धिक चर्चा को दिशा देते हैं। जर्मन मूल के ब्रिटिश भारतविद फ्रेंडरिक मैक्समूलर के अनुसार दर्शन कि इन 6 शाखाओं का विकास कई पीढ़ियों के दौरान व्यक्तिगत विचारकों के योगदान से हुआ। यद्यपि यह एक दूसरे से भिन्न दिखते हैं तथापि सत्य की इनकी समझ में आधारभूत तालमेल दिखता है।
अहिंसा: किसी प्राणी या जीव को नहीं मारना / मन, वचन, कर्म से किसी को दुख नहीं पहुंचाना।
'जैन धर्म'
महावीर का परिचय: लगभग 2500 वर्ष पूर्व जैन धर्म के 24वें तथा अंतिम तीर्थकर वर्धमान महावीर ने भी अपने विचारों का प्रसार किया। वह वज्जि संघ के लच्छवि कुल के एक क्षत्रिय राजकुमार थे। 30 वर्ष की आयु में उन्होंने घर छोड़ दिया और जंगल में रहने लगे 12 वर्ष तक उन्होंने कठिन व एकाकी जीवन व्यतीत किया। इसके बाद उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ।
महावीर द्वारा दी गई शिक्षा:
1). उनकी शिक्षा सरल थी। सत्य जानने की इच्छा रखने वाले प्रत्येक स्त्री व पुरुष को अपना घर छोड़ देना चाहिए।
2). उन्हें अहिंसा के नियमों का कड़ाई से पालन करना चाहिए अर्थात किसी भी चीज को न तो कष्ट देना चाहिए और न ही उसकी हत्या करनी चाहिए।
3). महावीर का कहना था, सभी जीव जीना चाहते हैं सभी के लिए जीवन प्रिय हैं। महावीर ने अपनी शिक्षा साधारण भाषा में दी।
जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा नियम का पालन:
1). जैन नाम से जाने गए महावीर के अनुयायियों को भोजन के लिए भिक्षा मांग कर सादा जीवन बिताना होता था।
2). उन्हें पूरी तरह से ईमानदार होना पड़ता था तथा चोरी न करने की उन्हें सख्त हिदायत थी।
3). उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन करना होता था पुरुषों को वस्त्रों सहित सब कुछ त्याग देना पड़ता था।
जैन: जैन शब्द 'जिन' शब्द से निकला है जिसका अर्थ है 'विजेता'।
- जैन धर्म उत्तर भारत के कई हिस्सों के साथ-साथ गुजरात, तमिलनाडु और कर्नाटक में भी फैल गया।
- अभी उपलब्ध जैन धर्म की शिक्षाएं लगभग 1500 वर्ष पूर्व गुजरात में वल्लभी नामक स्थान पर लिखी गई थी।
"संघ"
संघ: महावीर तथा बुद्ध दोनों का ही मानना था कि घर का त्याग करने पर ही सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है। ऐसे लोगों के लिए उन्हें 'संघ' नामक संगठन बनाया जहां पर घर त्याग करने वाले लोग एक साथ रह सके।
विनयपिटक:
1). संघ में रहने वाले बौद्ध भिक्षु के लिए बनाए गए नियम विनयपिटक नामक ग्रंथ में मिलते हैं।
2). विनयपिटक से हमें पता चलता है कि संघ में पुरुषों और स्त्रियों के रहने की अलग-अलग व्यवस्था थी।
3). सभी व्यक्ति संघ में प्रवेश ले सकते थे हालांकि संघ में प्रवेश के लिए बच्चों को अपने माता-पिता से, दासों को अपने स्वामी से, राजा के यहां काम करने वाले लोगों को राजा से, तथा कर्जदार को अपने देनदारियों से अनुमति लेनी होती थी। एक स्त्री को इसके लिए अपने पति से अनुमति लेनी होती थी।
संघ के लोगों का जीवन: संघ में प्रवेश लेने वाले स्त्री-पुरुष बहुत सादा जीवन जीते थे। वे अपना अधिकांश समय ध्यान करने में बिताते थे और दिन के एक निश्चित समय में वे शहर तथा गांव में जाकर भिक्षा मांगते थे। यही कारण है कि उन्हें भिक्खू तथा भिक्खुणी (साधु भिखारी) कहा गया।
नोट: संग में ब्राह्मण, क्षेत्रीय, व्यापारी, मजदूर, गनिकाएं तथा दास शामिल थे।
विहार: जैन तथा बौद्ध धर्म के भिक्खुनियों तथा अनुयायियों ने स्थाई शरणस्थल बनवाए जिसे विहार कहा गया।
ब्राह्मणों के आश्रम व्यवस्था:
1). जैन तथा बौद्ध धर्म जिस समय लोकप्रिय हो रहे थे लघु उसी समय ब्राह्मणों ने आश्रम व्यवस्था का विकास किया।
2). यहां आश्रम शब्द का तात्पर्य लोगों द्वारा रहने तथा ध्यान करने के लिए प्रयोग में आने वाले स्थान से नहीं है बल्कि इसका तात्पर्य जीवन के एक चरण से है।
3). ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा सन्यास नामक चार आश्रमों की व्यवस्था की गई।
4). ब्रह्मचर्य के अंतर्गत ब्राह्मण, क्षेत्रीय तथा वैश्य से यह अपेक्षा की जाती थी कि इस चरण के दौरान वो सादा जीवन बिताकर वेदों का अध्ययन करेंगे।
5). गृहस्थ आश्रम के अंतर्गत उन्हें विवाह कर एक गृहस्थ के रूप में रहना होता था। वानप्रस्थ के अंतर्गत इन्हें जंगल में रहकर साधना करनी थी। अंततः उन्हें सब कुछ त्याग कर सन्यासी बन जाना था।