Class 12th History Notes Chapter 01 in Hindi

ईंटे, मनके तथा अस्थियां
-हड़प्पा सभ्यता
Class 12th History Notes
सिंधु घाटी सभ्यता : सिंधु घाटी सभ्यता एक कांस्य युगीन सभ्यता थी इस सभ्यता का काल 2350 ईसा पूर्व से 1750 ईस्वी तक मानी जाती है।
सिंधु घाटी सभ्यता की मुख्य विशेषताएं :
- सिंधु घाटी सभ्यता की मुख्य विशेषताएं नगर नियोजन व्यवस्था थी क्योंकि इस घाटी में जिस प्रकार नगरों का विकास हुआ था वह आज की नगर व्यवस्था से हूबहू मिलती है।
- इस सभ्यता के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था और मुख्य फसल गेहूं और जौ।
- सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि को लेकर पुरातत्वविदो में एकमत नहीं है क्योंकि कोई प्राकृत बताते हैं तो कुछ देवनागरि परंतु अधिकतर पुरातात्विक का मानना है कि सिंधु घाटी की लिपि भाव चित्रात्मक है।
- सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि
- प्राकृत
- देवनागरी
- भाव चित्रात्मक
- हड़प्पा सभ्यता की खुदाई सन 1921 में प्रमुख भारतीय पुरातात्विद दयाराम साहनी के देखरेख में की गई थी इसलिए हड़प्पा सभ्यता की खोज का श्रेय दयाराम साहनी को जाता है।
- हड़प्पा सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता का नाम जॉन मार्शल ने दिया।
- हड़प्पा सभ्यता का दोवा सर्वेक्षण भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के पहले डायरेक्टर जनरल कनिंघम ने किया था।
- हड़प्पा की सर्वप्रथम खोज कनिंघम ने ही की थी।
- सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल
- उत्तर में - मांडा, अखनूर {जम्मू कश्मीर}
- पूर्व में - अलमगीरपुर मेरठ {उत्तर प्रदेश}
- दक्षिण में - अहमदनगर {महाराष्ट्र}
- पश्चिम में - सूतका गेडोर {बलूचिस्तान}
- सिंधु घाटी सभ्यता का कुल क्षेत्रफल 12,99,600 किलोमीटर और इसका आकार त्रिभुजाकार था सिंधु घाटी सभ्यता प्रमुख बंदरगाह था जो गुजरात के नदी के तट पर स्थित था।
- हड़प्पा को मेसोपोटामिया का उपनिवेश व्हीलर ने कहा था।
- मोहनजोदड़ो की खोज सन 1922 में राखलदास बनर्जी ने की थी मोहनजोदड़ो को आधुनिक पाकिस्तान के नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ है मृतकों का टीला यह सिंधु नदी के तट पर स्थित है।
- मुहरों और मुद्रांकनों का प्रयोग लंबी दूरी के संपर्कों को सुविधाजनक बनाने के लिए किया जाता था।
- मोहनजोदड़ो में कुओं की कुल संख्या लगभग 700 थी।
- 'द स्टोरी ऑफ इंडियन आर्कियोलॉजीस्ट' नामक पुस्तक एस. एन. राव ने लिखा है।
हड़प्पाई मुहरें :
- हड़प्पा सभ्यता की सबसे विशिष्ट पूरा वस्तु हड़प्पाई मुहरें थी जो सेलखड़ी नामक पत्थर से बनाई जाती थी।
- इन मुहरों पर सामान्य रूप से जानवरों के चित्र उत्कीर्ण थे।
- इसकी लिपि रहस्यमई थी, जिसको अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है।
विशिष्ट पूरावस्तु :
- मुहरें
- मनके
- वाट
- पत्थर के फलक
- पकी हुई ईंटें, {ये वस्तुएं अफगानिस्तान, जम्मू कश्मीर, बलूचिस्तान तथा गुजरात जैसे क्षेत्रों से मिली जो एक दूसरे से लंबी दूरी पर स्थित है।}
Note : पुरातत्वविद प्रीति संस्कृति शब्द का प्रयोग पूरावस्तुओं के ऐसे समूह के लिए करते थे जो एक विशिष्ट शैली के होते थे और सामान्यतः एक साथ एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र तथा कालखंड से संबंधित होते थे।
प्रमुख हड़प्पा स्थल : बनावली (हरियाणा), कालीबंगा (राजस्थान), शोर्तुघई (अफगानिस्तान), धोलावीरा (गुजरात)।
- आरंभिक हड़प्पा : सिंधु घाटी के क्षेत्र में हड़प्पा सभ्यता से पहले जो संस्कृति या अस्तित्व में थी उसे आरंभिक हड़प्पा कहा गया।
- परवर्ती हड़प्पा : सिंधु घाटी के क्षेत्र में हड़प्पा सभ्यता के बाद जो संस्कृति अस्तित्व में आई थी उसे परवर्ती हड़प्पा कहा गया।
निर्वाह के तरीक़
1. सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों की खाद्य सामग्री :
- हड़प्पा वासी कई प्रकार के पेड़ पौधों से प्राप्त उत्पादन और जानवरों जिसमें मछली शामिल है जो भोजन के रूप में उपयोग करते थे।
- हड़प्पा स्थलों से मिले अनाज के दानों में दिन हूं जो दाल सफेद चना तथा तीन शामिल है बाजरी के दाने गुजरात के स्थलों से प्राप्त हुए थे चावल के दाने अपेक्षाकृत कम पाए गए है।
- हड़प्पा निवासी स्वयं जानवरों का शिकार करते थे, अथवा अन्य आखेटक समुदायों से इनका मांस प्राप्त करते थे। मछली तथा पक्षियों की हड्डी भी मिली है।
2. हड़प्पा सभ्यता की तकनीकी व प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उपलब्धियां :
- हड़प्पा सभ्यता के लोग खेत में हल रेखाओं के दो समूह में एक दूसरे को संपूर्ण पर काटते हुए विद्वान थे जो दर्शाते हैं कि एक साथ दो अलग-अलग फसलें उगाई जाती थी।
- फसलों की कटाई के लिए हड़प्पा सभ्यता के लोग लकड़ी के हत्थों में बिठाए गए पत्थर के फल को क प्रयोग करते थे या फिर धातु के औजारों का प्रयोग करते थे।
- अधिकांश हड़प्पा स्थल अर्ध शुष्क क्षेत्रों में स्थित है जहां कृषि करने के लिए सिंचाई के लिए कुओं से प्राप्त पानी का प्रयोग किया जाता हो।
- इसके अतिरिक्त धोलावीरा में मिले जलाशयों का प्रयोग संभवत कृषि के लिए जल संचय हेतु किया जाता था।
मोहनजोदड़ो के आवासीय भवनों की विशिष्ट विशेषताएं :
- मोहनजोदड़ो का निचला शहर आवासीय भवनों के उदाहरण प्रस्तुत करता है इसमें से कई एक आंगन पर केंद्रित है जिसके चारों ओर कमरे बने थे संभवत आंगन खाना पकाने, कताई करने जैसे गतिविधियों का केंद्र था खासतौर पर गर्म और शुष्क मौसम में।
- यहां का एक अन्य रोचक पहलू लोगों को अपनी एक आंत्रता को दिए जाने वाला महत्व था भूमि तल पर बनी दीवारों में खिड़कियां नहीं थी।
- इसके अतिरिक्त मुख्य द्वार से आंतरिक भाग अथवा आंगन का सीधा अवलोकन नहीं किया जा सकता था।
- हर घर का यूट्यूब के फिर से बना अपना एक स्नानघर होता था जिसकी नालिया दीवार के माध्यम से जुड़ी हुई थी कुछ घरों में दूसरे तल या छत पर जाने के लिए सीढ़ियों के अवशेष मिले हैं।
हड़प्पा सभ्यता की जल निकास प्रणाली :
- हड़प्पा शहरों की सबसे अनूठी विशेषताओं में से एक ध्यान पूर्वक नियोजित जल निकास प्रणाली थी।
- सड़कों तथा गलियारों को लगभग एक 'ग्रीड पद्धति' में बनाया गया था और यह एक दूसरे को संपूर्ण पर काटती थी।
- ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों का निर्माण के साथ-साथ गलियों को बनाया गया था और उसके अगल-बगल आवासों का निर्माण किया गया।
- यदि घरों के गंदे पानी को गलियारे की नालियों से जोड़ना था तो प्रत्येक घर की कम से कम एक दीवार का गली से सटा होना आवश्यक था।
- नालियों की ऊंचाइयां कम से कम 4-5 फिट होती थी।
मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार :
- विशाल सुनाना घर आंगन में बना एक आयताकार जलाश्य था, जिसके चारों ओर घर बने होते थे।
- इसके तल तक जाने के लिए उत्तर और दक्षिण में सीढ़ियां बनाई गई थी।
- इसके चारों ओर जिप्सम के माध्यम से इसे जलवध किया गया था।
हड़प्पा निवासियों की आर्थिक गतिविधियां :
- हड़प्पा सभ्यता के लोगों का आर्थिक गतिविधियों में से एक था दूसरे देशों के साथ व्यापार करना जैसे ईरान, इराक़ तथा मिस्र से।
- हड़प्पा सभ्यता के निवासी कृषि भी करते थे तथा यह भी इनकी आर्थिक गतिविधियों में शामिल है।
- यह लोग मजदूरी जैसे कार्यों में सम्मेलन थे क्योंकि बड़ी इमारतों यानी कि स्नानागार जैसे बड़े जलाशयों के निर्माण के लिए जरूरत पड़ती होगी।
सामाजिक विविधताओं का अवलोकन : हड़प्पा वासी सामाजिक और आर्थिक विभिनता का पता लगाने के लिए कई विधियों का प्रयोग करते थे परंतु दो विधियों का प्रयोग मुख्य रूप से करते थे।
1. शवाधान :-
- हड़प्पा स्थलों से मिले शवाधानों में आमतौर पर मृतकों को गर्तों में दफनाया जाता था कभी-कभी शवाधान गर्त की बनावट एक दूसरे से अलग होती थी कुछ स्थानों पर गर्त की सताओं पर ईंटो की चिनाई की गई थी।
- कुछ कब्रों में मृदभांड तथा आभूषण मिले हैं जो संभव है एक ऐसी मान्यता की ओर संकेत है जिसके अनुसार इन वस्तुओं का मृत्योपरांत प्रयोग करते थे पुरुषों और महिलाओं दोनों के शवाधानों से आभूषण मिले हैं।
- हड़प्पा स्थल के कई गर्तों में महत्वपूर्ण व बहुमूल्य रत्न व सूस्म मनके के मिले हैं।
- कहीं-कहीं पर मृतकों को तांबे के बर्तनों के साथ दफनाया गया परंतु हड़प्पा वासी मृतकों के साथ बहुमूल्य वस्तुओं को दफनाने में विश्वास नहीं रखते थे।
2. विलासिता की वस्तुएं :
- पुरातत्वविद हड़प्पा सभ्यता के सामाजिक विभिन्नताओ का अवलोकन करने के लिए विलासिता की वस्तुओं का भी अध्ययन करते थे।
- उपयोगी वस्तुएं : पहले वर्ग में रोजमर्रा के उपयोग की वस्तुएं शामिल है जिन्हें पत्थर अलावा मिट्टी जैसे सामान्य पदार्थों से आसानी से बनाया जा सकता है इसमें चक्की, सूइयां, मृदभांड, झाँवा आदि शामिल है।
- पुरातत्व उन वस्तुओं को कीमती मानते हैं जो दुर्लभ हो अथवा महंगे स्थानीय स्तर पर अनुपलब्ध पदार्थों से अथवा जटिल तकनीकों से बनी हो इस प्रकार फ़यांन्स के छोटे पात्र कीमती माने जाते थे क्योंकि उन्हें बनाना कठिन था
- फ़यांन्स : घिसी हुई रेत अथवा बालू तथा रंग और चिपचिपा पदार्थ के मिश्रण को पका करके बनाया पदार्थ।
पुरातत्वविद शिल्प उत्पादन केंद्रों की पहचान :
- सिल्क उत्पादन की केंद्रों की पहचान के लिए पुरातत्वविद सामान्यतः निम्नलिखित को ढूंढते हैं- प्रस्तर पिंड, पूरे संघ तथा तांबा अयस्क जैसा कच्चा माल, औजार, अपूर्ण वस्तुएं त्याग दिया गया माल।
- कूड़ा करकट शिल्प कार्य के सबसे अच्छे संकेतों में से एक हैं उदाहरण के लिए यदि वस्तुओं के निर्माण के लिए संघ अथवा पत्थर को काटा जाता है तो इन पदार्थों के कूड़े करकट के रूप में उत्पादन के स्थान पर फेंक देते थे।
हड़प्पावासी के उत्पादन हेतु माल प्राप्त करने के तरीके :
- अभियान भेजना : उन्होंने खेत्री अंचल में तांबे के लिए और दक्षिण भारत में सोने के लिए अभियान भेजा।
- बस्तियां स्थापित करना : हड़प्पावासी में नागेश्वर और बालकोट में जहां आसानी से शंख उपलब्ध था बस्तियां स्थापित की।
- सुदूर के क्षेत्रों से संपर्क करना : हड़प्पा वासियों ने अपने आसपास के क्षेत्रों से संपर्क बनाया जैसे अफगानिस्तान में शोर्तुघई जो अत्यंत कीमती (महत्वकांक्षी) माने जाने वाले नीले रंग के पत्थर लाजवर्त मणि के सबसे अच्छे स्रोत थे।
एक रहस्यमई लिपि :
- यह लिपि आज तक पढ़ी नहीं जा सकी है एवं पूर्ण रूप से वर्णमालिय नहीं है।
- इसमें चिन्हो की संख्या कहीं अधिक है लगभग 375- 400 के बीच।
- इस लिपि में दाए ओर से बाई ओर लिखी गई है।
हड़प्पा सभ्यता में प्रचलित बाट :
- यह बाट सामान्यता: पर चर्ट नामक पत्थर से बनाए जाते थे, और आकार घनाकार होता था।
- इन बाटो के निचले मानदंड द्वआधारी थे जबकि ऊपर मानदंड दशमलव प्रणाली का अनुसरण करते थे।
- इन बाटो का प्रयोग संभवत: है आभूषणों और मन को को तौलने के लिए किया जाता था।
हड़प्पा सभ्यता के अंत के मुख्य कारण :
- हड़प्पा सभ्यता की विशिष्ट वस्तुओं बांटो, मुहर तथा विशिष्ट मनको का समाप्त हो जाना।
- आवास निर्माण की तकनीकों का ह्रास हुआ तथा बड़ी सार्वजनिक संरचनाओं का निर्माण अब बंद हो गया।
- जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई, अधिक बाढ़, नदियों का सुख जाना और मार्ग बदल लेना तथा भूमि का अत्यधिक उपयोग शामिल है।
- मूहरो, लिपि, विशिष्ट मनके तथा मृदभाण्ड के लोप, मनकिकृत बाट प्रणाली के स्थान पर स्थानीय बाटो का प्रयोग {शहरों के पतन तथा परित्याज्य जैसे परिवर्तनों से इस तर्क को बल मिलता है}।
एक नवीन प्राचीन सभ्यता :
- दयाराम साहनी : भारत के मुख्य पुरातात्विक थे जिन्होंने बीसवीं शताब्दी के आरंभिक दशकों में हड़प्पा में मुहरे खोज निकाली थी जो निश्चित रूप से आरंभिक ऐतिहासिक स्तरो से कहीं अधिक प्राचीन स्तरो से संबंधित थी।
- राखालदास बनर्जी : एक अन्य पुरातात्विक राखल दास बनर्जी ने हड़प्पा से मिली मुहरों के सामान मुहरे मोहनजोदड़ो से खोज निकाली जिससे यह अनुमान लगाया गया कि यह दोनों पूरास्थल एक ही पुरातत्वविद संस्कृति के भाग थे।
- इन्ही खोजों के आधार पर सन 1924 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जॉन मार्शल ने पूरे विश्व के समक्ष सिंधु घाटी में एक नवीन सभ्यता की खोज की घोषणा की।
- जॉन मार्शल : भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के जनरल डायरेक्टर के रूप में जॉन मार्शल का कार्यकाल वास्तव में भारतीय पुरातत्वविद इतिहास में एक व्यापक परिवर्तन का काल था वह भारत में कार्य करने वाले पहले पेशेवर पुरातात्विक थे और वे यहां यूनान तथा क्रीट से अपने कार्यों का अनुभव भी साथ लाए। कनिंघम की तरह उन्हें भी आकर्षक खोजों में दिलचस्पी थी पर उनमें दैनिक जीवन की पद्धतियों को जानने की भी उत्सुकता थी।
- आर. ई. एम. व्हीलर : व्हीलर सन 1944 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर बने इन्हें हड़प्पा स्थलों के उत्खनन कार्य में नई तकनीक प्रयोग करने के लिए जाना जाता है। व्हीलर ने पहचाना कि एकसमान क्षैतीज इकाइयों के आधार पर खुदाई की वजह टीले के स्तर विन्यास का अनुसरण करना अधिक आवश्यक है, साथ ही सेना के पूर्व- ब्रिगेडियर के रूप में उन्होंने पुरातत्व की पद्धति में एक सैनिक परिशुद्धता का समावेश भी किया।
भारतीय पुरातत्वविदो को पुरातात्विक व्याख्या करते समय समस्याएं :
- आरंभिक पुरातत्वविदो को लगता था कि कुछ वस्तुएं जो असामान्य और अपरिचित लगती थी संभवत: ऐसी वस्तुएं धार्मिक महत्व की होती थी।
- इनमें आभूषणों से लदी नारी मृनमूर्तियां जिनमें से कुछ के शीर्ष पर बड़े प्रसाधन थे शामिल हैं इन्हें मातृदेवियों की संज्ञा दी गई थी।
- पुरुषों की दुर्लभ पत्थर से बनी मूर्तियां जिनमें उन्हें एक लगभग मानकीकृत मुद्रा में एक हाथ घुटने के ऊपर रख बैठा हुआ दिखाया गया था जैसा कि पुरोहित राजा को भी इसी प्रकार वर्गीकृत किया गया है अतः इन सभी कारणों से हम कह सकते हैं कि हड़प्पा सभ्यता के विषय में पूरातत्वों को पुरातात्विक सर्वेक्षण करते समय अनेक समस्याओं का समाधान करना पड़ा होगा।