Class 12th History Notes Chapter 04 in Hindi

विचारक, विश्वास और इमारतें
'बौद्ध धर्म'
गौतम बुद्ध का इतिहास
गौतम बुद्ध:
- बुद्ध के जन्म का प्रतीक - कमल
- बुद्ध के ज्ञान का प्रतीक - पीपल का वृक्ष
- बुद्ध के मृत्यु का प्रतीक - स्तूप
- बुद्ध के प्रथम गुरु - आलारकलाम
- बुद्ध सबसे ज्यादा श्रावस्ती शरावती में दिया था जो कौशल प्रदेश की राजधानी थी।
बौद्ध धर्म के त्रिरत्न
- भगवान बुध की मृत्यु 483 ईसा पूर्व में यूपी के कुशीनगर में 80 वर्ष की अवस्था में हुई थी।
- बुद्ध की मृत्यु की परिघटना महापरिनिर्वाण कहलाती है।
- बौद्ध संघ में प्रवेश पाने को उपसंपदा कहा जाता है।
- बौद्ध संघ में प्रवेश करने वाली प्रथम महिला उनकी सौतेली मां प्रजापति गौतमी थी।
- बौद्ध धर्म मध्य एशिया होते हुए चीन, कोरिया, जापान, श्रीलंका से समुद्र पार कर म्यांमार, थाईलैंड और इंडोनेशिया तक फैला है।
' जैन धर्म'
- जैन साहित्य को आदम कहा जाता है।
- जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पारशव नाथ थे।
- जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक महावीर को माना जाता है।
- महावीर का जन्म 540 ईसा पूर्व बिहार के वैशाली जिले के कुंड ग्राम में हुआ था।
- महावीर के विचार: स्वयं से लड़ो, बाहरी दुश्मनों से क्या लड़ना? जो स्वयं पर विजय प्राप्त कर लेंगे उन्हें आनंद की प्राप्ति होगी या मोक्ष की प्राप्ति होगी।
- महावीर ने अपना गृह जीवन 30 वर्ष की अवस्था में त्याग दिया था।
- महावीर को 42 वर्ष की अवस्था में ऋजुपालिका नदी के किनारे साल वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
- जैन धर्म का प्रारंभिक इतिहास ज्ञात होता है कल्पसूत्र से जिसकी रचना भद्रबाहु ने की थी।
- महावीर के जीवन का विवरण भवावती सूत्र में मिलता है।
- महावीर के पुत्री का नाम प्रियदर्शनी था और उनके दामाद का नाम जमाली था।
- महावीर के प्रथम अनुयायी जमाली थे।
- महावीर के प्रथम भिक्षुणी पद्मावती थी जो चंपा नरेश वाहन की पुत्री थी।
- महावीर ने अपना प्रथम उपदेश पावापुरी में प्राकृतिक भाषा में दिया था।
- जैन धर्म का सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ कल्पसूत्र था जिसकी रचना संस्कृत में की गई थी।
- महावीर का प्रतीक चिन्ह बैल था।
- महावीर की मृत्यु 72 वर्ष की अवस्था में 468 ईसा पूर्व में पावापूरी में हुई थी।
- प्रथम जैन सभा 322 से 298 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र में हुई थी।
- जैन धर्म में जीवन का अंतिम लक्ष्य निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त करना था।
- जैन धर्म के संप्रदाय: श्वेतांबर, दिगंबर।
- जैन धर्म के त्रिरत्न: सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक आचरण।
महावीर का जीवन परिचय:
वैदिक परंपरा में यज्ञों का महत्व
- पूर्व वैदिक परंपरा में यज्ञों की जानकारी में हमें 15 100 से 1000 ईसा पूर्व में संकलित ऋग्वेद से मिलती है वैसे ही एक प्राचीन परंपरा थी।
- ऋग्वेद अग्नि, इंद्र, सोम आदि कई देवताओं की स्तुति का संग्रह है।
- यज्ञों के समय इन स्रोतों का उच्चारण किया जाता था और लोग मवेशी बेटे सोचते लंबी उम्र आदि के लिए प्रार्थना करते थे।
समकालीन बौद्ध ग्रंथ
- समकालीन बौद्ध ग्रंथों में हमें 64 संप्रदायो और चिंतन परंपराओं का उल्लेख मिलता है।
- इससे हमें जीवन चर्चा और विवादों की एक झांकी मिलती है।
- शिक्षक एक जगह से दूसरी जगह घूम घूम कर अपने दर्शन या विश्व के विषय में अपनी समाज को लेकर एक दूसरे से तथा सामान्य लोगों से तर्क-वितर्क करते थे।
- ये चर्चाए कूटागारशालायो नुकीली छत वाली झोपरी या ऐसे उपवनो में होती थी जहां घुम्मकड़ मनीषी ठहरा करते थे।
- यदि एक शिक्षक अपने प्रतिद्वंदी को अपने तर्कों से समझा लेता था तो वह अपने अनुयायियों के साथ उनका शिष्य बन जाता था इसलिए किसी भी संप्रदाय के लिए समर्थन समय के साथ बढ़ता घटता रहता था।
जैन धर्म की मुख्य विशेषताएं
- जैन दर्शन की सबसे महत्वपूर्ण अवधारणा यह है कि संपूर्ण विश्व प्राणवान है।
- यह माना जाता है कि पत्थर चट्टान और जल में भी जीवन होता है।
- जीवो के प्रति अहिंसा खासकर इंसान और जानवरों के पौधों और कीड़े मकोड़ों को ना मारना जैन दर्शन का केंद्र बिंदु है।
- जैन अहिंसा के सिद्धांत ने संपूर्ण भारतीय चिंतन परंपरा को प्रभावित किया।
जैन धर्म का विस्तार
- जैन धर्म धीरे-धीरे भारत के कई हिस्सों में फैल गया।
- बादलों की तरह ही जैन विद्वानों ने प्राकृत, संस्कृत, तमिल जैसी अनेक भाषाओं में काफी साहित्य का सृजन किया।
- सैकड़ों वर्षों से इन ग्रंथों की पांडुलिपिया मंदिरों से जुड़े पुस्तकालय में संरक्षित है।
- धार्मिक परंपराओं से जुड़ी वही सबसे प्राचीन मूर्तियों में जैन तीर्थंकरों के उपासकों द्वारा बनवाई गई मूर्तियां भारतीय उपमहाद्वीप के कई हिस्सों में पाई गई है।
सिद्धार्थ के साधना मार्ग
- इसमें से एक था शरीर को अधिक से अधिक कष्ट देना जिसके चलते हुए मरते-मरते बचे।
- सिद्धार्थ ने उन अतिवादी तरीकों को त्याग कर उन्होंने कई दिन तक ध्यान करते हुए अंततः ज्ञान की प्राप्ति किया।
- इसके बाद से उन्हें बुद्ध अथवा ज्ञानी व्यक्ति के नाम से जाना गया।
- बाकी जीवन उन्होंने धर्म या सम्यक जीवन यापन की शिक्षा दी।
बुद्ध की शिक्षा
- बुद्ध की शिक्षाओं को सूत पिटक में दी गई कहानियों के आधार पर पुनरनिर्मित किया गया है।
- कुछ कहानियों में उनकी अलौकिक शक्तियों का वर्णन है दूसरी कथाएं दिखात है कि अलौकिक शक्तियों की वजह बुद्ध ने लोगों को विवेक और तर्क के आधार पर समझाने का प्रयास किया।
- उदाहरण एक मरे हुए बच्चे की शौक मग्न मां बुद्ध के पास आई तो उन्होंने बच्चे को जीवित करने के बजाए उस महिला को मृत्यु के अवश्यंभावी होने की बात समझी। यह कथाएं आम जनता की भाषा में रखी गई थी जिससे उन्हें आसानी से समझा ज सकता है।
नोट : बौद्ध परंपरा के अनुसार बुध का अपने शिष्यों के लिए उनका अंतिम निर्देश था "तुम सब अपने लिए खुद ही ज्योति बनो क्योंकि तुम्हें खुद ही अपनी मुक्ति का रास्ता ढूंढना है"
भिक्खु: एक दिन में एक बार सुपातर कौन से भोजन दान पाने के लिए वे एक कटोरा रखते थे क्योंकि यह दान पर निर्भर थे इसलिए उन्हें भिक्खु का जाता था।
थेरी: ऐसी महिलाएं जिन्होंने निर्वाण प्राप्त कर लिया हो उसे तेरी कहते हैं।
- इसमें राजा धनवान गणपति वर्तमान में जाने कर्मकार दास शिल्पकार सभी शामिल थे।
- एक बार संघ में आ जाने पर सभी को बराबर माना जाता था क्योंकि भिक्खु और भी भिक्खुनी बनने पर उन्हें अपनी पुरानी पहचान को त्याग देना पड़ता था।
- संघ की संचालन पद्धति गणों और संघों की परंपरा पर आधारित थी इसके तहत लोग बातचीत के माध्यम से एकमत होने की कोशिश करते थे।
बौद्ध धर्म का तेजी से फैलना
- इसका कारण यह था कि लोग समकालीन धार्मिक प्रथाओं से असंतुष्ट थे और उस ग्रुप में तेजी से हो रहे सामाजिक बदलाव ने उन्हें उलझन में बांध रखा था।
- बौद्ध शिक्षा में जन्म के आधार पर श्रेष्ठा की बजाय जिस तरह अच्छे आचरण और मूल्यों को महत्व दिया गया उससे महिलाएं और पुरुष इस तरह धर्म की तरफ आकर्षित हुए।
- सबसे छोटे और कमजोर लोगों की तरह मित्रता और करुणा के भाव को महत्व देने की आदत काफी लोगों को भाये।
स्तूप: ऐसी कई अन्य जगह थी जिन्हें पवित्र माना जाता था इन जगहों पर बुद्ध से जुड़े कुछ अवशेष जैसे उनकी अस्थियां या उनके द्वारा प्रयुक्त सामान गाड़ दिए गए थे, इन तीनों को स्तूप कहते थे।
स्तूप कैसे बनाए जाते थे?
- स्तूपो की वेदिकाओ और स्तंभों पर मिले अभिलेख से इन्हें बनाने और सजाने के लिए दान दिए गए।
- कुछ दान राजाओं द्वारा दिए गए थे जैसे सातवाहन वंश के राजा तो कुछ सिद्धांत संस्कारों और व्यापारियों की श्रेणियों द्वारा दिए गए।
- साँची के एक तोरणद्वार का हिस्सा हाथी दांत का काम करने वाले शिल्पकारों के दान से बनाया गया।
- इन इमारतो को बनाने में भिक्खुओ और भिक्खूनीयों ने भी दान दिया।
सांची के स्तूप की संरचना
- स्तूप का जन्म एक गोलाद्ध लिए हुए मिट्टी के टीले से हुआ जिसे बाद में अंड कहां गया। धीरे-धीरे इसकी संरचना ज्यादा जटिल हो गई जिसमें कई चौकोर और गोला कारों का संतुलन बनाया गया अंड के ऊपर एक हर्मिका होती थी यह छज्जे जैसा ढांचा देवताओं के घर का प्रतीक था।
- टीले के चारों ओर एक वेदिका होती थी जो पवित्र स्थल को सम्मान दुनिया से अलग करती थी।
- साँची और भरहुत के आरंभिक स्तूप बिना अलंकरण के है सिवाय इसके कि उसमें पत्थर की वेदिकएं और तोरणद्वार है ये पत्थर की वेदिका है किसी बांस के या काठ के घेरे के समान थी और चारों ओर दिशाओं में खड़े तोरणद्वार पर खूब नक्काशी की गई थी।
- उपासक पूर्वी द्वार से प्रवेश करके टीले को दाएं तरफ रखते हुए दक्षिणावर्त परिक्रमा करते थे मानो वे अकाश में सूर्य के पथ का अनुसरण कर रहे हो बाद में स्तूप के टीले और पेशेवर में शाहजी की ढेरी में स्तूपों में ताख और मूर्तियां उत्कीर्ण करने की कला के काफी उदाहरण मिलते हैं।
Q4. सांची का स्तूप क्यों बच गया जबकि अमरावती का स्तूप नष्ट हो गया?
- क्योंकि अमरावती की खोज थोड़ी पहले हो गई थी तब तक विद्वान इस बात के महत्व को नहीं समझ पाए थे कि किसी पुरातात्विक अवशेष को उठाकर ले जाने की वजह खोज की जगह पर ही संरक्षित करना कितना महत्वपूर्ण था।
- 1818 में जब सांची की खोज हुई इसके तीन तोरणद्वार भी खड़े थे चौथा वहीं पर गिरा हुआ था और टीला भी अच्छी हालात में था।
- तभी यह सुझाव आया कि तोरण द्वारा को पेरिस किया लंदन भेज दिया जाए।
- अंततः कई कारणों से सांची का स्तूप वही बना रहा और आज भी बना हुआ है जबकि अमरावती का महाचैत्य अब सिर्फ एक छोटा सा टीला है जिसका सारा गौरव नष्ट हो चुका है।
Q5. बुद्ध मूर्ति कला को समझने के लिए इतिहासकारों को बुद्ध के चरित्र लेखन के बारे में समझ क्यों बनानी पड़ी?
- क्योंकि बौद्ध चरित्र लेखन के अनुसार एक वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई कई प्रारंभिक मूर्ति कारों में बुद्ध को मानव रूप में ना दिखा कर उनकी उपस्थिति प्रतीकों के माध्यम से दर्शाने का प्रयास किया।
- उदाहरण रिक्त स्थान बुद्ध के ध्यान की दशा तथा स्तूप महापरिनिर्वाण के प्रतीक बन गए चक्र का भी प्रतीक के रूप में प्राय: इस्तेमाल किया गया।
- यह बुद्ध द्वारा सारनाथ में दिए गए पहले उपदेश का प्रतीक था जैसा कि स्पष्ट है ऐसी मूर्तिकला को अक्षरश: नहीं समझा जा सकता है।
- पेड़ का तात्पर्य केवल एक पेड़ नहीं था वरन् बुद्ध के जीवन की एक घटना का प्रतिक था ऐसे प्रतीकों को समझने के लिए यह जरूरी है कि इतिहासकार कलाकृतियों के निर्माताओं को पहचानने की परंपराओं को जाने।
हीनयान: महायान के अनुयाई दूसरी बौद्ध परंपराओं के समर्थकों को हीनयान के अनुयाई कहते थे।
थेरवाद: पुरातन परंपरा के अनुयाई खुद को थेरवाद कहते थे।
Q6. ईसा के प्रथम सदी के बौद्ध अवधारणाओं और व्यवहार में कौन से बदलाव नजर आए है?
- प्रारंभिक बौद्ध मत में निब्बान के लिए व्यक्तिगत प्रयास को विशेष महत्व दिया गया था बुद्ध को भी एक मनुष्य समझा जाता था जिन्होंने व्यक्तिगत प्रयास से प्रबोधन और निब्बान प्राप्त किया।
- परंतु धीरे-धीरे एक मुक्तिदाता की कल्पना उभरने लगी यह विश्वास किया जाने लगा कि वह मुक्ति दिलवा सकते थे साथ-साथ बोधिसत्त की अवधारणा भी उभरने लगी।
- बोधिसत्तो को परम करुणामय जीव माना गया जो अपने सतकार्यों से पुण्य कमाते थे लेकिन वे इस पुण्य का प्रयोग दुनिया को दुखों में छोड़ देने के लिए और निर्माण प्राप्ति के लिए नहीं करते थे।
- बल्कि वे इससे दूसरों की सहायता करते थे बुद्ध और बोधिसत्तो की मूर्ति की पूजा इस परंपरा का एक महत्वपूर्ण अंग बन गया।
- चिंतन की एक नई परंपरा को महायान के नाम से जाना गया
- जिन लोगों ने इन विश्वासों को अपनाया उन्होंने पुरानी परंपरा को हीनयान नाम से संबोधित किया।
गर्भगृह: शुरू के मंदिर एक चौकोर कमरे के रूप में थे जिन्हें कहा जाता था।
शिखर: गर्भगृह के ऊपर एक ऊंचा ढांचा बनाया जाने लगा जिसे शिखर कहा जाता था।