Class 12th History Notes Chapter 06 in Hindi

भक्ति-सूफी परंपराएं
- धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ
{लगभग 8वीं से 18वीं सदीं तक}
Class 12th History Notes
तांत्रिक पूजा पद्धति
- देवी की आराधना पद्धति को तांत्रिक पूजा पद्धति नाम से जाना जाता है।
तांत्रिक पूजा पद्धति की मुख्य विशेषताएं
- तांत्रिक पूजा पद्धति भारतीय उपमहाद्वीप के कई भागों में प्रचलित थी।
- इसके अंतर्गत स्त्री और पुरुष दोनों ही शामिल हो सकते थे।
पारंपरिक भक्ति परंपरा की मुख्य विशेषताएं
- ब्राह्मण देवताओं और भक्त जनों के बीच महत्वपूर्ण बिचौलिए बने रहे।
- भक्ति परंपरा की एक और विशेषता इसकी विविधता है।
सगुण
- यह विशेषण सहित होते थे।
- प्रथम वर्ग में शिव विष्णु तथा उनके अवतार व देवियों की आराधना आती है जिसकी मूर्त रूप में अवधारणा हुई।
- यहां विशेषण विहीन होते थे।
- जबकि निर्गुण भक्ति परंपरा में अमूर्त निराकार ईश्वर की उपासना की जाती थी।
प्रारंभिक भक्ति आंदोलन
- प्रारंभिक भक्ति आंदोलन लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व में अलवारों विष्णुभक्त और नयनारों शिवभक्त के नेतृत्व में हुआ था।
अलवार और नयनार संत
- विष्णु के भक्त अलवार और शिव के भक्तों को नयनार के नाम से जाना गया।
मुख्य विशेषताएं
- इन्होंने अपनी यात्राओं के दौरान अलवार और नयनार संतो ने कुछ पावन स्थलों को अपने इष्ट का निवास स्थल घोषित किया।
- इन स्थलों पर बाद में विशाल मंदिरों का निर्माण हुआ और वह तीर्थस्थल माने गए।
- संत कवियों के भजनों को इन मंदिरों में अनुष्ठानों के समय गाया जाता था और साथ ही इन संतों की प्रतिमा की पूजा भी की जाती थी।
- अलवार और नयनार संतो ने जाति प्रथा व ब्राह्मणों के विरोध में आवाज उठाई क्योंकि भक्ति संत विविधि समुदायों से थे जैसे ब्राह्मण, शिल्पकार, किसान और कुछ तो उन जातियों से आए थे जिन्हें अपृश्य से माना जाता था।
नोट :
- अलवर संतों का मुख्य काव्य संकलन 'नलयिरादिव्यप्रबंधम्' था, जिसकी रचना तमिल भाषा में की गई थी।
- अलवार स्त्री संत (भक्त) - अंडाल
- नयनार स्त्री संत (भक्त) - करइक्काल अम्मइयार
- दक्षिण भारत के चिदंबरम, तंजावूर और गंगोकोडचोलपुराम मंदिरों का निर्माण चोर सम्राटों की मदद से किया गया था।
- चोल सम्राट ने अप्पर संबंदर और सुंदरार कवियों की प्रतिमाएं मंदिरों में स्थापित करवाई थी।
- दिल्ली सल्तनत की स्थापना 13वीं शताब्दी में तुर्कों ने की थी।
- सूफियों ने इंसान-ए-कामिल बताते हुए पैगंबर मोहम्मद का अनुसरण करने की सीख दी।
- खानकाह के बाहर के फकीर को कलंदर, मदारी, मलंग,हैदर के नाम से जाने जाते थे।
- बे-शरिया : शरिया की अवहेलना करने वाले लोगों को बे-शरिया कहा जाता था
- बा-शरिया : शरिया के नियमों के पालन करने वाले लोगों को बा-शरिया कहा जाता था।
- ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर आने वाले पहले सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक थे।
- मीराबाई के गुरु रैदास थे।
- शंकरदेव 15वी शताब्दी के उत्तरार्ध में असम में वैष्णव धर्म के मुख्य प्रचारक थे।
तबरम
- दक्षिण भारत के सम्राटों ने तमिल भाषा के भजनों के गायन को एक ग्रंथ में संकलित करवाया था जिसे तबरम के नाम से जाना गया।
लिंगायत
- 12 वीं शताब्दी में कर्नाटक में एक नवीन आंदोलन का उद्भव हुआ जिसका नेतृत्व बसवन्ना (1106-68) नामक एक ब्राह्मण ने किया था, इन्हीं के अनुयाई वीरशैव लिंगायत कहलाए।
लिंगायतो की विशेषताएं
- यह शिव की आराधना लिंग के रूप में करते थे।
- इस समुदाय के पुरुष वाम स्कंध पर चांदी के एक पिटारे में एक लघु लिंग को धारण करते थे।
- लिंगायतो का विश्वास है कि मृत्युपरांत भक्त शिव में लीन हो जाएंगे तथा इस संसार में पुण: नहीं लौटेंगे।
- धर्मशास्त्र में बताए गए श्राद्ध संस्कार का वे पालन नहीं करते थे और अपने मृतकों को विधिपूर्वक दफनाते थे।
- लिंगायतो ने जाति की अवधारणा और कुछ समुदायों के दूषित होने की ब्राह्मणी है अवधारणा का विरोध किया।
- इन्होंने वयस्क विवाह और विधवा पुनर्विवाह को लिंगायतो ने मान्यता प्रदान की।
- इन्होंने वीरशैव परंपरा की व्युत्पत्ति उन बचनों से है जो कन्नर भाषा में उन स्त्री पुरुषों द्वारा रचे गए जो इस आंदोलन में शामिल हुए।
उलमा
- उलमा इस्लाम धर्म के ज्ञाता थे इस धर्म के संरक्षक होने के नाते वे धार्मिक, कानूनी और अध्यापन संबंधी जिम्मेवारी निभाते थे।
जिम्मी
- जिम्मी वे लोग थे जो उद्घाटित धर्म ग्रंथ को मानते थे जैसे इस्लामिक शासकों के क्षेत्र में रहने वाले यहूदी और ईसाई। यह लोग जाजिया नामक कर चुकाते थे।
शरिया
- सरिया मुसलमान समुदाय को निर्देशित करने वाला कानून है यह कुरान शरीफ और हदीस पर आधारित है।
इस्लाम धर्म की मुख्य 5 बातें
- अल्लाह एकमात्र ईश्वर
- पैगंबर मोहम्मद उनके दूत
- मुसलमान समुदाय के लोगों को दिन में 5 बार नवाज पढना चाहिए
- खैरात बांटना चाहिए
- रमजान के महीने में रोजा रखना चाहिए और हम के लिए मक्का मदीना जाना चाहिए।
मातृगृहता
- मातृगृहता वह परिपाटी है जहां स्त्रियां विवाह के बाद अपने मायके में ही अपनी संतान के साथ रहती है और उसके पति उसके साथ आकर रह सकते हैं।
14वीं शताब्दी तक उत्तर भारत में होने वाले नवीन परिवर्तन
- राजपूत राज्यों का उदय।
- राज्य में ब्राह्मणों का महत्वपूर्ण स्थान होना।
- नाथ, जोगी और सिद्ध जैसे धार्मिक नेताओं का रूढ़िवादी ब्रह्मण्य ढांचे से बाहर होना।
- अनेक धार्मिक नेताओं ने वेदों की सत्ता को चुनौती दी और अपने विचार आम लोगों की भाषा में सामने रखें।
- भारत में तुर्कों का आवागमन।
- भारत में सूफियों का आवागमन।
सूफ़ी
- इस्लाम की आरंभिक शताब्दियों में धार्मिक और राजनीतिक संस्था के रूप में खिलाफत की बढ़ती विषय शक्ति के विरुद्ध कुछ आध्यात्मिक लोगों का रहस्यवाद और वैराग्य की ओर झुकाव बड़ा इन्हीं लोगों को सुखी और उनकी विचारधारा को सूफीवाद कहा गया।
- इन लोगों ने रूढ़िवादी परी भाषाओं तथा कर्मचारियों द्वारा की गई कुरान और सुनना की बौद्धिक व्यवस्था की आलोचना की।
- नानी मुक्ति की प्राप्ति के लिए ईश्वर की भक्ति और अनेक आदेशों के पालन पर बल दिया।
- पैगंबर मोहम्मद को इंसान ए कामिल बताते हुए उनका अनुसरण करने की सीख दी।
- 11वीं शताब्दी तक आते-आते सूफीवाद एक पूर्ण विकसित आंदोलन किया जिसका सूची और कुरान से जुड़ा हुआ अपना साहित्य था।
- संस्थागत दृष्टि से सुखी अपने को एक संगठित समुदाय खानकाह के इर्द-गिर्द स्थापित करते थे।
- खांनकाह का नियंत्रण शेख, पीर अथवा मुर्शीद के हाथ में था।
सिलसिला शब्द
- सिलसिला का शाब्दिक अर्थ जंजीर है जो चेक और मूर्छित के बीच एक निरंतर रिश्ते की घोतक है जिसकी पहली अटूट कड़ी एवं मरम्मत से जुड़ी है।
उर्स
- पीर की मृत्यु के बाद जिस की दरगाह उसके मूर्तियों के लिए भक्ति का स्थल बन जाती थी इस तरह पीर की दरगाह पर जियारत के लिए जाने की खास तौर से उनकी बरसी के अवसर पर यह परिपाटी चल निकली जिसे उर्स कहा जाता था।
शेख की दरगाह पर आने वाले प्रमुख कवि और इतिहासकार
प्रमुख कवि -
- अमीर हसन सिजड़ी
- अमीर खुसरो
इतिहासकार -
- जियाउद्दीन बरनी
गरीब नवाज
- पिछले 700 सालों में अलग-अलग संप्रदायों वर्गों और समुदायों के लोग पांच महान चिश्ती संतों की दरगाह पर अपनी आस्था प्रकट करते रहे हैं परंतु इनमें सबसे पूजनीय दरगाह ख्वाजा मुइनीद्दीन की है जिन्हें गरीब नवाज कहा जाता है।
16 वीं शताब्दी में अजमेर की दरगाह के लोकप्रियता का कारण
- इस दरगाह को जानने वाले तीर्थयात्रियों के भजनों ने ही अकबर को यहां आने के लिए प्रेरित किया अकबर ने एक दरगाह की यात्रा 14 बार की कभी तो 2 साल में दो-तीन बार यात्राएं की कभी नई जीत के लिए आशीर्वाद लेने अथवा संकल्प की पूर्ति पर या फिर पुत्रों के जन्म पर।
- उन्होंने यह परंपरा 1580 तक बनाए रखा प्रत्येक यात्रा पर अकबर द्वारा दान भेंट दिया जाता था इम दान भेंट के ब्योरे शाही दस्तावेजों में दर्ज है उदाहरण के लिए 1568 में उन्होंने तीर्थ यात्रियों के खाना पकाने के लिए एक विशाल देग दरगाह को भेंट की उन्होंने दरगाह के अहाते में एक मस्जिद का भी निर्माण कराया।
- नाच और संगीत भी जियारत के हिस्से थे खासतौर से गांव वालों द्वारा प्रस्तुत रहस्यवादी गुणगान जिसमें परमानंद की भावना को उभारा जा सके।
- सूफी संत जिक्रे या फिर कामायानी अध्यात्मिक संगीत द्वारा ईश्वर की उपासना में विश्वास रखते थे चिश्ती उपासना पद्धति में सभा का काफी महत्व इस तथ्य की पुष्टि करता है कि चिश्ती स्थानीय भक्ति परंपरा से जुड़े हैं।
अमीर खुसरो
- अमीर खुसरो महानकवि, संगीतकार तथा शेख निजामुद्दीन औलिया के अनुयाई थे।
दक्कन के गाँवों में इस्लाम
- लिंगयातों द्वारा लिखे गए कन्नड़ के वचन और पंदरपुर के संतो द्वारा लिखे गए मराठों के अभंगो ने भी उन पर अपना प्रभाव छोड़ा इस माध्यम से इस्लाम ढक्कन के गांव में जगह पाने में सफल हुए।
संत कबीर
- संत कबीर दास जी का जन्म 1440 ईस्वी में यूपी के बनारस के पास स्थित लहरतारा में हुआ। उनकी पत्नी का नाम लोई और उनका पालन पोषण जुलाहा परिवार में हुआ था। वैसे तो यह वास्तविक नहीं है क्योंकि संत रामनंद ने एक विधवा ब्राह्मण स्त्रियों को पुत्र होने का आशीर्वाद दे दिया था तो उस महिला ने उस शिशु को लहरतारा तालाब के पास फेंक दिया वहीं पर निक और नीमा नामक दो पति पत्नी दो मूल रूप से जलाए थे इस बच्चे को देखा और उठाकर अपने घर ले आए और उनका पालन पोषण किया इस तरह उनका नाम हिंदू परिवार और पालन-पोषण मुस्लिम जुलाहा परिवार से हुआ अतः उनकी मृत्यु 1518 ईस्वी में भगहर में हुआ।
बाबा गुरु नानक
- बाबा गुरु नानक का जन्म एक हिंदू व्यापारी परिवार में हुआ उनका जन्म स्थल मुख्यतः इस्लाम धर्मआवली पंजाब का ननकाना गांव था जो रावी नदी के पास था उन्होंने फारसी पढ़ी और लेखाकार के कार्य का परीक्षण प्राप्त किया उनका विवाह छोटी आयु में हो गया था किंतु वह अपना अधिक समय सुखी और भक्त संतों के बीच गुजारते थे, उन्होंने दूरदराज की यात्राएं भी की।
कबीर की मुख्य शिक्षाएं
- कबीर भक्ति आंदोलन के कवि थे कबीर ने कई भाषाओं और बोलियों में रचनाएं की है उन्होंने ईश्वर प्रेम पर बल दिया और कहा कि ईश्वर एक है।
- उनका विश्वास था कि भक्ति तथा क्षाक् के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है कबीर ने गुरु को बहुत अधिक महत्व दिया जोकि बहुत महत्वपूर्ण होगी उन्होंने कहा कि गुरु के द्वारा ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है वह उसमें क्षाक् का संचार करता है और अक्षाक् को भगाता है।
- कबीर ने कहा सभी जीव जंतु एक ही परमात्मा की रचना है, उसके अंश हैं और उनके अंदर एक आत्मा विराजमहक है। कबीर दास जी ने कहा कि यदि हम ईश्वर के पास छोटे बनकर जाएंगे या अपने को ईश्वर के लिए समर्पित कर देंगे तो ईश्वर हमारी सहायता अवश्य करेंगे। कबीर ने परम सत्य को वर्णित करने के लिए अनेक परी परिपाठियों का सहारा लिया इस्लामी दर्शन का अनुसरण करते हुए कबीर परम सत्य को अल्लाह, खुदा, हजरत और पीर का दर्जा देते हैं।
- कबीर वेदांत दर्शन से प्रभावित थे और सत्य को अलग निराकार ब्रह्म और आत्मन कहते हैं। योगी परंपरा के कुछ शब्दों का भी प्रयोग कबीर ने किया जैसे- शब्द और सुन्य।
- कबीर ने हिंदू और मुसलमान दोनों के कर्मकांड की अत्सर्जा की। लेकिन वह इस्लाम दर्शन से अधिक प्रभावित दिखते हैं वह एक ईश्वर बात का समर्थन और मूर्ति पूजा का खंडन करते हैं अन्य कविताएं जिक्र और इश्क के सूफी सिद्धांतों का इस्तेमाल नाम सिमरन कि हिंदू परंपरा की अभिव्यक्ति करने के लिए करती है।
बाबा गुरु नानक की प्रमुख शिक्षाएं
- एक ईश्वरवाद : कबीर की तरह ही बाबा गुरु नानक ने एक स्वर बाद पर बल दिया उन्होंने ऐसे इष्ट देव की मूर्ति अजन्मा स्वयंभ थे उनके विचार के अनुसार ईश्वर को ना तो स्थापित किया जा सकता है और ना ही निर्मित किया जा सकता है वह स्वयंभ है वह अलख, अपार, अगम्म और इंद्रियों से परे हैं, उनका ना कोई काल है ना कर्म और ना ही जाति।
- भक्ति एवं प्रेम मार्ग तथा आदर्श चरित्र : बाबा गुरु नानक के अनुसार ईश्वर के प्रति भक्ति और प्रेम से ही मुक्ति संभव है, इसके लिए वर्ण और जाति का कोई भेद नहीं है। उसके अनुसार अच्छे व्यवहार, आदर्श तथा उच्च चरित्र से ईश्वर के निकट पहुंचा जा सकता है।
- आडंबरो का विरोध : बाबा गुरु नानक ने मार्गदर्शन के लिए गुरु की अनिवार्यता को पहली शर्त माना उन्होंने मूर्ति पूजा तीर्थ यात्रा धार्मिक आडंबरो की कटु आलोचना की उन्होंने अवतारवाद का भी विरोध किया।
- जगत के कण-कण में ईश्वर : गुरु नानक ने संसार को माया से परिपूर्ण नहीं बल्कि इसके कण-कण में ईश्वरीय शक्ति को देखा है।
- जीव तथा आत्मा में अटूट संबंध : बाबा गुरु नानक के अनुसार जीव परमात्मा से उत्पन्न होता है जीव में परमात्मा निवास करती है तथा अमर होती है।
- बाबा गुरु नानक ने अपने भक्तों को मार्ग देने पर बल दिया जिस पर चलकर गृहस्थ जीवन का पालन भी हो सकता है और आध्यात्मिक जीवन को अपनाया जा सकता है कबीर की तरह गुरु नानक ने भी संप्रदायिकता का विरोध किया और हिंदू मुस्लिम एकता पर बल दिया उनका लक्ष्य एक नए धर्म की स्थापना करवाना नहीं था उनका पवित्र वादी दृष्टिकोण शांति, सद्भावना, भाईचारा स्थापित करने के लिए हिंदू मुस्लिम के मध्य स्थित मतभेद को दूर करना था।
- बाबा गुरु नानक ने जातिवाद का घोर विरोध किया वह सच्चे मानव आदि थे उन्होंने मानव समाज की सेवा को ही सच्ची ईश्वर की आराधना माना वह मानव को समान समझते थे तथा मानव मात्र से प्रेम की शिक्षा देते थे उनका प्रेम मौखिक ना होकर सेवा भावना से ओध-प्रोत था।
- उनका स्त्रियों के प्रति सुधारवादी दृष्टिकोण था उन्होंने स्त्रियों को महान माना है बाबा गुरु नानक ने अपने धर्म स्त्रियों को खोए हुए अधिकारों को वापस दिलाया उन्होंने स्त्रियों व पुरुषों की समानता पर बल दिया।
- बाबा गुरु नानक देव ने गरीब को अमीर से अधिक प्रेम किया तथा ईमानदारी की कमाई को सच्ची कमाई माना बाबा गुरु नानक ने धर्म संग्रह के स्थान पर उनके उचित वितरण पर जोर दिया।
भक्ति आंदोलन उदय के कारण
- वैष्णव मत का प्रभाव हिंदू धर्म की त्रुटियां इस्लाम धर्म के सूफी मत का प्रभाव महान सुधारकों का उदय
- भक्ति आंदोलन के मूल सिद्धांत
- एक ईश्वर में विश्वास
- शुध कार्य करना।
- विश्व भादत्व की भावना पर बल देना।
- प्रेम भावना से पूजा करना।
- मूर्ति पूजा का खंडन करना।
- जात पात का खंडन करना।
- गुरु भक्ति करना।
भक्ति आंदोलन के प्रभाव और महत्व
धार्मिक प्रभाव
- हिंदू धर्म की रक्षा
- ब्राह्मणों के प्रभाव में कमी
- इस्लाम के प्रसार में वृद्धि
- सिखमत का उदय
- बौद्ध मत का उदय
सामाजिक तथा सांस्कृतिक प्रभाव
- हिंदू मुसलमानों के सामाजिक संबंधों में सुधार
- निम्न वर्ग में सुधार
- समाज सेवा की भावना का प्रोत्साहन
- लोगों में मिश्रण कला का विकास
- साहित्य विकास
सूफी मत के मुख्य सिद्धांत
- अल्लाह से प्रेम
- संसार के सभी सुखों को त्यागना
- अहिंसा तथा शांतिवाद पर विश्वास
- मानवता से प्रेम
- मुर्शीद का महत्व
- भौतिक सिद्धांत
- अल्लाह की भक्ति में संगीत तथा नृत्य का महत्व
Q. इतिहासकार धार्मिक परंपरा के इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए किन स्रोतों का प्रयोग करते है?
- मूर्तिकला
- स्थापत्य
- धर्म गुरु से जूड़ी कहानियां
- दैवीय स्वरूप को समझने को उत्सुक स्त्री और पुरुष द्वारा लिखी गई काव्य रचनाएं