"Class 7th Science Notes Chapter 02"

'प्राणियों में पोषण'
Class 7th Science Notes
पोषण के विभिन्न चरण
- अंतर्ग्रहण : किसी जीव द्वारा भोजन को शरीर में ग्रहण करने की क्रिया अंतर्ग्रहण कहलाती है।
- पाचन : जटिल खाद्य पदार्थों का सरल पदार्थों में बदलना या टूटना विखंडन कहलाता है, तथा इस क्रिया को पाचन कहते हैं।
- अवशोषण : सरल घुलनशील पचित खाद्य पदार्थों का रक्त में अवशोषित होने की क्रिया अवशोषण कहलाती है।
- स्वांगीकरण : पचित खाद पदार्थ शरीर के विभिन्न भागों तक पहुंचते हैं जहां इनका उपयोग जटिल पदार्थों को बनाने में होता है इस प्रकरण को स्वांगीकरण कहते हैं।
- निष्कासन : अपचित भोजन सामग्री को शरीर से बाहर निकालने की क्रिया निष्कासन कहलाती है।
मानव का पाचन तंत्र
1. आहारनाल
- मुख एवं मुख भोजन
- भोजन नली
- आमाशय
- क्षुद्रांत (छोटी आँत)
- बृहद्रांत (बड़ी आँत)
- गुदा
2. पाचक ग्रंथियां
- लार ग्रंथि
- यकृत (liver)
- अग्न्याशय
आहारनाल
1. मुख एवं मुख भोजन
मुख गुहिका के 3 भाग होते हैं :-
- दांत
- जीभ
- लार ग्रंथि
दांत
- दांत भोजन को छोटे टुकड़ों में तोड़ कर उन्हें चबाने और पीसने का कार्य करते हैं।
दांत के प्रकार एवं कार्य
दांतो के नाम कार्य दातों के निचला संख्या ऊपरी योग
जबड़ा जबड़ा
कृतंक कर्तन एवम 4 4 8
दंशन
रदनक चिरना एवम् 2 2 6
फाड़ना
अग्र चबाना एवम् 4 4 8
चर्वणक पीसना
चबाना एवम् 6 6 12
चर्वणक पीसना योग = 32
दूध के दांत
- शैशवकाल में हमारे दांतो का पहला सेट निकलता है तथा 8 वर्ष की उम्र तक यह सारे दांत गिर जाते हैं उन्हें दूध के दांत कहते हैं।
स्थाई दांत
- दूध के दांत गिरने के बाद निकलने वाले दांतो को स्थाई दांत कहते हैं जो स्वस्थ व्यक्ति के जीवन भर बने रहते हैं यद्यपि वृद्धावस्था में यह प्राय गिरने लगते हैं।
जीभ
- यह एक पेशिया मांसल अंग है जो मुख गुहिका के अधर तल से पीछे की ओर जुड़ी होती है इसके आगे का सिरा स्वतंत्र होता है जो किसी भी दिशा में घूम सकता है।
जीभ के कार्य
- भोजन में लार मिलाने में मदद करती है।
- भोजन को निगलने में सहायता होती है
- जी पर विभिन्न प्रकार के स्वाद कालिकाएं होती है जो भोजन के स्वाद को पहचानने में मदद करती है यह चार प्रकार के स्वाद को पहचान सकती है। नमकीन, खट्टा, मीठा, कड़वा।
- बोलने में सहायक होती है।
लार ग्रंथि
- हमारे मुंह में लार ग्रंथि मिलती है जो लार स्रावित करती है लार का कार्य भोजन में उपस्थित मंड को शर्करा में बदलना है।
भोजन नली (ग्रसिका)
- जब आया हुआ भोजन एक लंबी एवं सांकरी मांसल नलिका से गुजरता है जिसे भोजन नली (ग्रसिका) कहते हैं।
- भोजन नली की भित्ति में सकुंचन के द्वारा भोजन नीचे की ओर सरकता जाता है।
- जब आमाशय में भोजन को स्वीकार नहीं करता तो उसे वमन द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है।
आमाशय
- मोटी भक्ति वाली एक थैली नुमा संरचना होता है।
- आहार नाल का सबसे चौड़ा भाग है।
- आकृति इसकी चपटी एवं 'J' आकार की होती है।
- आमाशय की आंतरिक सतह श्लेष्मल, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा पाचक रस स्रावित करती है।
आमाशय के कार्य
- श्लेष्मल आमाशय की आंतरिक सतह की सुरक्षा करती है।
- अगले आमाशय में भोजन के साथ आने वाले जीवाणुओं को नष्ट करता है यह पाचन रसो को क्रिया करने के लिए माध्यम को अम्लीय बनाता है।
- पाचन रस प्रोटीन को सरल पदार्थों में तोड़ते है।
क्षुद्रांत (छोटी आँत)
- यह 7.5 मीटर लंबी अत्यधिक कुण्डलित नली है।
- यकृत एवं अग्न्याशय से स्रावित एंजाइम जो क्षुद्रांत में आते हैं।
- इसकी भित्ति भी कुछ एंजाइम स्रावित करती है।
बृहद्रांत (बड़ी आँत)
- बृहद्रांत, क्षुद्रांत की अपेक्षा चौड़ी एवं छोटी होती है।
- इसकी लंबाई 1.5 मीटर होती है।
- मुख्य कार्य जल एवं खनिज लवणों का अवशोषण करना है।
- बचा हुआ आपचित भोजन अर्द्धठोस मल के रूप में रहता है।
यकृत
- गहरे लाल भूरे रंग की ग्रंथि होती है।
- शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि
- यह पित्तरस का स्त्राव करती है जो पित्ताशय में संग्रहित रहता है।
- पित्तरस वसा का पाचन करता है।
अग्न्याशय
- हल्के पीले रंग की ग्रंथि
- आमाशय के ठीक नीचे होती है।
- आमाशय रस कार्बोहाइड्रेट तथा प्रोटीन को तरल पदार्थों में बदलता है।
- आंशिक रूप से पचा क्षुद्रांत भोजन के नीचले भाग में पहुंचाता है जिसमें आंत्र रस क्रिया को पूरा करता है।
- कार्बोहाइड्रेट → ग्लूकोज
- वसा → वसा अम्ल + ग्लिसरोल
- प्रोटीन → अमीनो अम्ल