शिक्षा: उन्होंने काशी महाविद्यालय से संस्कृत परीक्षा उत्तीर्ण किया।
उसके बाद उन्होंने 1930 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय से ज्योतिष आचार्य की उपाधि प्राप्त की।
संस्कृत, प्राकृतिक, अपभ्रंश, बंगला आदि भाषाओं एवं इतिहास, दर्शन, संस्कृत धर्म आदि विषयों में उनकी विशेष गति थी।
उपलब्धियां: आलोक पर्व पुस्तक पर उन्हें साहित्य पुरुस्कार दिया गया। लखनऊ विश्वविद्यालय ने उन्हें ' डी.लिट ' की मानद उपाधि दी और भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण अलंकार से विभूषित किया।
द्विवेदी जी की महत्वपूर्ण रचनाएं:
- निबंध संकलन: अशोक के फूल, विचार और वितर्क, कल्पलता, कुरज, आलोक पर्व।
- उपन्यास: चारुचंद्रलेख, बाणभट्ट की आत्मकथा, पुनर्नवा, अनामदास का पोथा।
- आलोचनात्मक ग्रंथ: सूर - साहित्य, कबीर हिंदी साहित्य की भूमिका, कालिदास की लालित्य योजना।
उनकी सभी रचनाएं हजारी प्रसाद द्विवेदी ग्रंथावली (के 11 खंड) में संकलित है।
रचनाओं की विशेषताएं:
- सरल भाषा और प्रांजल।
- व्यक्तित्व व्यंजकता।
- आत्मपरकता।
- व्यंग्य शैली।
द्विवेदी जी का इतिहास:
- 1940 - 50 तक द्विवेदी जी हिंदी भवन शांतिनिकेतन के निदेशक रहें।
- 1950 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष बने।
- 1952 - 53 काशी नागरी प्रचारिणी सभा के अध्यक्ष।
- 1955 में वे (राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त) प्रथम राजभाषा आयोग के सदस्य बने।
- 1960 से 1967 तक पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ में हिंदी विभागध्यक्ष का पद ग्रहण किया।
- 1967 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में रेक्टर नियुक्त हुए।
हजारी प्रसाद द्विवेदी जी सन् 1979 में चल बसे।