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(किसान, जमींदार और राज्य) Class 12th History Notes Chapter 08 in Hindi | Education Flare

(किसान, जमींदार और राज्य) Class 12th History Notes Chapter 08 in Hindi | Education Flare,

 Class 12th History Notes Chapter 08 in Hindi

Class 12th History Notes

किसान, जमींदार और राज्य

- कृषि समाज और मुगल साम्राज्य
{लगभग 16वीं से 17वीं सदीं तक}

Class 12th History Notes 

आईने-ए-अकबरी 

  • आईने-ए-अकबरी की रचना अबुल फजल ने की थी। 
  • इसका मुख्य उद्देश्य अकबर के साम्राज्य का एक ऐसा खाका पेश करना था जहां एक मजबूत सत्ताधारी वर्ग सामाजिक मेलजोल बनाकर रखना था। 

16वीं और 17वीं शताब्दी में कृषि समाज की जानकारी के मुख्य स्रोत

  • आईने-ए-अकबरी
  • 18 वीं शताब्दी में गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान से मिलने वाले दस्तावेज
  • ईस्ट इंडिया कंपनी के दस्तावेज

किसान के प्रकार

खुद-काश्त
  • खुद-काश्त किसान वे थे जो उन्हीं गाँव में रहते थे जिसमें उनकी जमीन थी। 
पाहि-काश्त
  • पाहि-काश्त वे किसान थे जो दूसरे गांव से ठेके पर खेती करने आते थे। 
16वीं शताब्दी में कृषि का विस्तार
  • जमीन की बहुतायत,  मजदूरों की मौजूदगी और किसानों की गतिशीलता के कारण से कृषि का लगातार विस्तार होने लगा। 
खेती का प्राथमिक उद्देश्य
  • खेती का प्राथमिक उद्देश्य लोगों का पेट भरना था। इसलिए रोजमर्रा के खाने की जरूर जैसे- चावल, गेहूं, ज्वार इत्यादि फसलें सबसे ज्यादा उगाई जाती थी। 
खेती 
  1. खरीफ फसल
  2. रबी की फसल

फसलों का उत्पादन

  • आगरा में 39 किस्में की फसलें उगाई जाती थी। 
  • दिल्ली प्रांत में 45 फसलों की पैदावार की जाती थी। 
  • बंगाल में सिर्फ 50 किस्में के चावल की पैदावार होती थी। 
जिन्स-ए-कामिल
  • जिन्स-ए-कामिल से अभिप्राय 'सर्वोत्तम फसलों' से है और मुगल राज्य में इस तरह के फसलों को बढ़ावा इसलिए देते थे क्योंकि इससे राज्य को ज्यादा कर मिलता था। 

17वीं शताब्दी में फसल

  • 17वीं शताब्दी में दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से नई फसलें भारतीय उपमहाद्वीप में पहुंची। 
  • मक्का भारत में अमेरिका और स्पेन के रास्ते आया और 17वीं तक इसकी गिनती पश्चिम भारत की मुख्य फसलों में होने लगी। 
  • टमाटर, आलू और मिर्च जैसी सब्जियां नई दुनिया से आई। इसी तरह अनानास और पपीता जैसे फल भी वहीं से आए। 
नकदी फ़सले
  1. तिलहन (सरसो) 
  2. दलहन

सामूहिक ग्रामीण समुदाय के मुख्य घटक

  • खेतीहार किसान
  • पंचायत
  • गांव का मुखिया

16वीं और 17वीं शताब्दी के ग्रामीण भारत में जाति का महत्व

  • जाति और अन्य जाति जैसे भेदभाव की वजह से खेतीहार किसान कई तरह के समूहों में बांटे हुए थे खेतों की जुताई करने वालों में एक बड़ी संख्या में ऐसे लोगों की थी जो नीचे समझे जाने वाले कामों में लगे थे या फिर खेतों में मजदूरी करते थे। 
  • हालांकि खेती लायक जमीन की कमी नहीं थी, फिर भी कुछ जाति के लोगों को सिर्फ नींद समझे जाने वाले काम ही दिए जाते थे इस तरह वे गरीब रहने के लिए मजबूर थे। 
  • जनगणना तो उस वक्त नहीं थी पर जो थोड़े बहुत आंकड़े और तथ्य हमारे पास हैं उनसे पता चलता है कि गांव की आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा ऐसे ही समूह का था इसके पास संसाधन सबसे कम थे और यह जाति व्यवस्था की पाबंदियों से बने थे इनकी हालात कमोबेश वैसी ही थी जैसे की आधुनिक भारत में दलितों की। 
  • मुसलमान समुदाय में हलाल कुरान जैसे नीच कामों से जुड़े समूह गांव की हदों के बाहर रह सकते थे इसी तरह बिहार में मल्लाहज़ादाओं (शाब्दिक अर्थ - नाविकों के पुत्र) की तुलना दासों से की जाती थी। 
  • समाज के निचले तबकों में जाति गरीबी और सामाजिक हैसियत के बीच सीधा रिश्ता था ऐसा बीच के समूह में नहीं थे मारवाड़ में लिखी गई एक किताब के अनुसार राजपूतों की चर्चा किसानों के रूप में करते थे इस किताब के अनुसार जाट भी किसान थे लेकिन जाति व्यवस्था में उनकी जगह राजपूतों के मुकाबले नीची थी।
  • 17वीं सदी में राजपूत होने का दावा वृंदावन के इलाके में गौरव समुदाय ने भी किया बावजूद इसके कि वे जमीन की जुताई के काम में लगे थे। 
  • पशुपालन और बागवानी में बढ़ते मुनाफे की वजह से अहीर, गुज्जर और माली जैसे जातियां सामाजिक सीढ़ी में ऊपर उठी। 
  • पूर्वी इलाकों में पशुपालक और मछुआरे जातियां जैसे सदगोप व कैवर्त भी किसानों की सामाजिक स्थिति पाने लगी। 

पंचायत और गांव का मुखिया

  • पंचायत में विविधता : गांव की पंचायत में बुजुर्गों का जमावड़ा होता था आमतौर पर यह गांव के महत्वपूर्ण लोग हुआ करते थे। जिनके पास अपनी संपत्ति के पुश्तैनी अधिकार होते थे। जिन गांवों में कई जातियों के लोग रहते थे अक्सर वहां पंचायत में विविधता पाई जाती थी। 
  • खेतिहर मजदूरों के लिए पंचायत में कोई जगह ना होना यह एक ऐसा अल्पतंत्र था जिसमें गांव के अलग-अलग संप्रदायों और जातियों की नुमाइंदगी होती थी फिर भी इसकी संभावना कम ही है कि छोटे मोटे और नीच काम करने वाले खेतिहर मजदूरों के लिए इसमें कोई जगह थी। 
  • गांव के मुखिया का चुनाव बुजुर्गों की सहमति से होना : पंचायत का सरदार एक मुखिया होता था जिसे मुकदम या मंडल कहते थे गांव के मुखिया का चुनाव गांव के बुजुर्गों की आम सहमति से होता था और इस चुनाव के बाद उन्हें इसकी मंजूरी जमींदार से लेनी पड़ती थी मुखिया अपने पद पर तभी तक बना रहता था जब तक गांव के बुजुर्गों को उस पर भरोसा था। 
  • मुखिया के कार्य : गांव की आमदनी व खर्चे का हिसाब किताब अपनी निगरानी में बनवाना मुखिया का मुख्य काम था और इसमें पंचायत का पटवारी उसकी मदद करता था। 
  • पंचायत के खर्चे में प्रति व्यक्ति का योगदान होना : पंचायत का खर्चा गांव के उस आम का जाने से चलता था जिसमें हर व्यक्ति अपना योगदान देता था इस खजाने से उन कर अधिकारियों की खातिरदारी का खर्चा भी किया जाता था जो समय समय पर गांव का दौरा किया करते थे। 
  • कोष का इस्तेमाल सामुदायिक कार्यों के लिए होना : इस कोष का इस्तेमाल बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए भी होता था और ऐसे सामुदायिक कार्यों के लिए भी जो किसान खुद नहीं कर पाते थे जैसे कि मिट्टी के छोटे-छोटे बांध बनाना या नहर खोदना। 
  • पंचायत के कार्य : पंचायत का एक बड़ा काम लिया तसल्ली करना था कि गांव में रहने वाले अलग-अलग समुदायों के लोग अपने जाति की हदों के अंदर रहे पूर्वी भारत में सभी सादिया मंडप की मौजूदगी में होती थी जाति की अवहेलना रोकने के लिए लोगों के आचरण पर नजर रखना गांव के पंचायत की जिम्मेदारी में से एक था। 
  • पंचायतों को गंभीर दंड देने का अधिकार : पंचायतों को जुर्माना लगाने और समुदाय से निष्कासित करने जैसे ज्यादा गंभीर दंड देने के अधिकार के समुदाय से बाहर निकलना एक बड़ा कदम था जो एक सीमित समय के लिए लागू किया जाता था इसके तहत दंडित व्यक्ति को गांव छोड़ना पड़ता था इस दौरान वह अपनी जाति और पैसे से हाथ धो बैठता था ऐसी नीति का मकसद जातिगत रिवाजों की आवहेलना रोकता है। 
  • गांव में हर जाति का पंचायत में होना : ग्राम पंचायत के अलावा गांव में हर जाति की अपनी पंचायत होती थी समाज में यह पंचायतें काफी ताकतवर होती थी राजस्थान में जाति पंचायतें अलग-अलग जातियों के लोगों के बीच दीवानी के झगड़ों का निपटारा करती थी वह जमीन से जुड़े दावेदारियां के झगड़े सुन जाती थी यह तय करती थी कि शादियां जातिगत मानदंडों के मुताबिक हो रही है या नहीं और यह भी कि गांव के आयोजन में किसको किसके ऊपर तरजीह दी जाएगी। 

Q. पश्चिमी भारत के विभिन्न प्रांतों के संकलित दस्तावेजों में किन अर्थों का वर्णन है, और पंचायतों का इन जीवों के प्रति क्या व्यवहार था? 

  • प्रस्तावना : पश्चिमी भारत खासकर राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे प्रांतों के संकलित दस्तावेज में ऐसी कई अर्जियां है जिनमें पंचायत से ऊंची जातियां या राज्य के अधिकारियों के खिलाफ जबरन कर उगाही या बेकार वसूली की शिकायत की गई है आमतौर पर या अर्जियां ग्रामीण समुदाय के सबसे निचले तबके के लोग लगाते थे। 
  • अर्जियों का कारण : इनमें से किसी जाति या संप्रदाय विशेष के लोग सम्राट समूहों की उन मार्गों के खिलाफ अपना विरोध जताते थे जिन्हें वे नैतिक दृष्टि से अवैध मानते थे उनमें एक थी बहुत ज्यादा करके मांग क्योंकि इससे किसानों का दैनिक गुजारा ही जोखिम में पड़ जाता था खासकर सूखे या ऐसी दूसरी विपदाओं के दौरान उनकी नजर में जिंदा रहने के लिए न्यूनतम बुनियादी साधन ही उनका परंपरागत रिवाजी हक था।
  • अर्जियों के प्रति पंचायतों का रूख : वे समझते थे कि ग्राम पंचायत को इसकी सुनवाई करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि राज्य अपना नैतिक फर्ज अदा करें और न्याय करें निचली जाति के किसानों और राज्य के अधिकारियों या स्थानीय जमीदारों के बीच झगड़ो में पंचायत के फैसले अलग-अलग मामलों में अलग अलग हो सकते है। अत्यधिक कर की मांगों के मामलों में पंचायत अक्सर समझौते का सुझाव देती थी। 
  • किसानों द्वारा अपनाए गए रास्ते : जहां समझौते नहीं हो पाते थे वहां किसान विरोध के ज्यादा उग्र रास्ते अपनाते थे जैसा कि गांव छोड़कर भाग जाना। 



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