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(रेशे से वस्त्र तक) Class 7th Science Notes Chapter 03 in Hindi | Education Flare

(रेशे से वस्त्र तक) Class 7th Science Notes Chapter 03 in Hindi | Education Flare,रेशे रेशे लंबे मजबूत एवं प्रत्यास्थ धागेनूमा संरचना है जिससे वस्त्र

  "Class 7th Science Notes Chapter 03"

Class 7th Science Notes,

'रेशे से वस्त्र तक'

Class 7th Science Notes

रेशे

  • रेशे लंबे मजबूत एवं प्रत्यास्थ धागेनूमा संरचना है जिससे वस्त्र बनाए जाते हैं। 

रेशे के प्रकार

1.) प्राकृतिक रेशे
  • पादप रेशे : पौधे से प्राप्त किए जाने वाले रेशे को पादप किसे कहते हैं। उदाहरण - कपास के पौधे से रुई तथा पटसन के पौधे से जूट। 
  • जान्तव रेशे : जंतुओं से प्राप्त किए जाने वाले रेशे को जावन तेरे से कहते हैं। उदाहरण - ऊन (ऊन भेड़ बकरी आंख और अन्य जंतुओं से प्राप्त होती है) और रेशम। 
2.) मानव निर्मित रेशे
  • नायलॉन
  • टेरिलीन 
  • रेयान

वरणात्मक प्रजनन

  • तंतरूपी मुलायम बालों जैसे विशेष को युक्त भेड़ें उत्पन्न करने के लिए जाना तो के चयन की प्रक्रिया वरणात्मक प्रजनन कहलती है। 

ऊन प्रदान करने वाले जंतु

1.) भेड़ की ऊन
  • सामान्यतः भेड़ की ऊन का उपयोग किया जाता है। 
  • भेड़ के रोएदार त्वचा पर दो प्रकार के रेशे होते हैं-
  1. दाढ़ी के रूखे बाल
  2. त्वचा के निकट अवस्थित तंतरूपी मुलायम बाल
2.) याक
  • तिब्बत और लद्दाख में याक की ऊन प्रसिद्ध है। 
3.) बकरी
  • जम्मू एवं कश्मीर के पहाड़ी क्षेत्रों में मिलने वाली अंगोरा नस्ल की बकरियों से अंगोरा ऊन प्राप्त करते हैं। 
  • कश्मीरी बकरी की त्वचा के निकट मुलायम बाल के शॉल बनाई जाती है इन्हें पश्मीना वाले शॉले कहते हैं। 
4.) ऊंट
  • ऊंट के शरीर के बालों से उन बनती है। 
5.) लामा और ऐल्पेका
  • दक्षिण अमेरिका में लामा और ऐल्पेका से ऊन प्राप्त करते हैं। 

रेशे से ऊन बनाना

  • भेड़ों को ऊन प्राप्त करने के लिए पालते हैं। 
  • उनके बालों को काटकर उन्हें संसाधित करके ऊन बनाते हैं। 

भेड़ पालन और प्रजनन

  • भारत में भेड़ों को मुख्यतः जम्मू एवं कश्मीर हिमाचल प्रदेश उत्तराखंड अरुणाचल प्रदेश सिक्किम के पहाड़ी भागों मे पाला जाता है। 
  • भेड़ घास और पत्तियां खाने के कारण शाहकरी है। 
  • भेड़ पालने वाले उन्हें चारे के अलावा दाले, मक्का, ज्वार, खली (बीच में से तेल निकाल लेने के बाद बचा पदार्थ) और खनिज खिलाते है। 
  • सर्दियों में भेड़ों को घर के अंदर रखते हैं और उन्हें पत्तियां, अनाज और सूखा चारा खिलाते हैं। 

भेड़ों की कुछ भारतीय नस्लें

नस्ल के नाम ऊन की गुणवत्ता  राज्य कहां पाई जाती है
लोही अच्छी गुणवत्ता की ऊन   राजस्थान, पंजाब
रामपुर बुशायर भूरी ऊन  उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश
नाली (नली)
बाखरवाल
गलीचे की ऊन
ऊनी शॉलों के लिए
राजस्थान, हरियाणा, पंजाब
जम्मू और कश्मीर
मारवाड़ी मोटी/रुक्ष ऊन गुजरात
पातनवाड़ हौज़ोरी गुजरात

रेशों को ऊन में संसाधित करना

  • भेड़ से ऊन को एक लंबी प्रक्रिया से प्राप्त किया जाता है इसमें निम्नलिखित चरण शामिल है :-
चरण 1 :- ऊन की कटाई
  • भेड़ के बालों को त्वचा की पतली परत के साथ शरीर से उतार लिया जाता है या प्रक्रिया ऊन की कटाई कहलाती है। 
चरण 2 :- अभीमार्जन
  • त्वचा सहित उतारे गए बालों को टंकियों में डालकर अच्छी तरह से धोया जाता है जिससे उनकी चिकनाई, धूल और गर्त निकल जाए। यह प्रकरण अभीमार्जन कहलाता है। 
चरण 3 :- छँटाई
  • अभीमार्जन के बाद छँटाई की जाती है और रोमिल अथवा रोएंदार बालों को कारखाने भेज दिया जाता है जहां विभिन्न गठन वाले बालों को छाँटा या पृथक किया जाता है। 
चरण 4 :- बर की छँटाई
  • बालों में से छोटे-छोटे कोमल व फुले हुए रेशों को जिन्हें बर कहते हैं, छाँट लिया जाता है। रेशों को पुन: अभीमार्जन करके सुखा लिया जाता है। 
चरण 5 :- रंगाई
  • रेशों की विभिन्न रंगों में रंगाई की जाती है। 
चरण 6 :- रीलिंग
  • अब रेशों को सीधा करके सुलझाया जाता है और फिर लपेटकर उनसे धागा बनाया जाता है। 

रेशम

  • रेशम (सिल्क) के रेशे 'जान्तव रेशे' होते हैं। 
  • रेशम के कीट रेशम के रेशों/फाइबर को बनाते हैं। 
  • रेशम प्राप्त करने के लिए रेशम के कीड़ों को पालना रेशम कीट पालन (सेरीकल्चर) कहलाता है। 

शहतूत की पत्ती पर अंडे

  • मादा रेशम कीट अंडे देती है जिनमें से लार्वा निकलते हैं जो कैटरपिलर/इल्ली या रेशम कीट कहलाते हैं। 

रेशम कीट

  • कैटरपिलर आकार में वृद्धि करते हैं और प्यूपा/कोशित में विकसित हो जाता है। 

कोकून

  • प्यूपा अंग्रेजी के 8 के रूप में अपना सिर हिलाता है और पतले तार के रूप में प्रोटीन से बना एक पदार्थ स्रावित करता है जो कठोर (सुखकर) होकर रेशम का रेश बन जाता है। 
  • जल्दी ही प्यूपा से पूरी तरह ढक जाता है यह आवरण कोकून कहलाता है। 

कोकून में विकाशशील कीट

  • कीट का इसके आगे का विकास कोकून के भीतर होता है। 
  • रेशम का धागा रेशम कीट के कोकून से प्राप्त रेशों से तैयार किया जाता है। 

रेशम कीट की किस्मों से प्राप्त रेशम का धागा

  1. टरस रेशम
  2. मूगा रेशम
  3. कोसा रेशम
  • सबसे सामान्य रेशम कीट शहतूत रेशम कीट है। 
  • इस कीट के कोकून से प्राप्त होने वाला रेशम फाइबर मृदु, चमकदार और लचीला होता है। 

कोकून से रेशम बनाना

  • रेशम प्राप्त करने के लिए रेशम कीटों को पालते हैं और इनके कोकूनो को इकट्ठा करके रेशम के फाइबर प्राप्त करते हैं। 

रेशम कीट पालन

  • मादा रेशम कीट एक बार में बहुत सारे अंडे देती है। 
  • अंडे को कपड़े की पट्टियों या कागज पर कट्ठा करके कीट पालको को बेचते हैं ये पालक अंडे को उचित स्थितियों, उचित ताप एवं आद्रता में रखते हैं। 
  • यह कार्य शहतूत के वृक्षों पर नई पत्तियां आने पर करते हैं अंडों से लार्वा/ कैटरपिलर/ रेशम के बाहर निकलते हैं यह दिन-रात खाते हैं और साइज में काफी बड़े हो जाते हैं इन्हें ताजी कटी पत्तियों के साथ बांस के ट्रे में रखते हैं। 
  • 25-30 दिन बाद कैटरपिलर खाना बंद कर देते है और कोकून बनाने के लिए वे बांस के छोटे-छोटे कक्षों में चले जाते है। 
  • कैटरपिलर कोकून बनाते हैं जिसके अंदर प्यूपा विकसित होता है। 

रेशम के संसाधन 

  1. वयस्क किट में विकसित होने से पहले कोकूनो की बड़ी ढ़ेरी को धूप में रखते हैं या पानी में उबालाते हैं, या भाप में रखते हैं। 
  2. इसके द्वारा रेशम के फाइबर अलग अलग हो जाते हैं। 
  3. इन रेशों से रेशम का धागा बन्ना रेशम की रीलिंग कहलाता है। 

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